चुनाव के बाद भी फ्रांस को क्यों नहीं मिला नया पीएम, ग्रैब्रियल अटाल के इस्तीफे के बाद आगे क्या?
France New PM Deadlock: फ्रांस को संसदीय चुनावों के बाद भी नया प्रधानमंत्री नहीं मिला है। इस बीच गैब्रियल अटाल का इस्तीफा इमैनुएल मैक्रों ने स्वीकार कर लिया है। वे केयरटेकर प्रधानमंत्री बने रहेंगे। ऐसे में सवाल ये है कि फ्रांस को नया प्रधानमंत्री कब मिलेगा और क्या कारण है कि पेरिस में प्रधानमंत्री चुनने में इतनी देर हो रही है।
संसदीय चुनावों के परिणाम में लेफ्ट पार्टियों का गठबंधन 'न्यू पॉपुलर फ्रंट' (NPF) सबसे बड़ा गुट बनकर उभरा। एनपीएफ के पास सबसे ज्यादा सीटें हैं। लेकिन इस गुट की पार्टियों के बीच अंदरूनी खींचतान ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम पर सहमति नहीं बनने दी है। ये हालात तब हैं जब फ्रांस में सिक्योरिटी को लेकर चिंताएं सबसे ज्यादा हैं, क्योंकि अगले हफ्ते पेरिस में ओलंपिक की शुरुआत होने जा रही है।
फ्रांस को क्यों नहीं मिला नया प्रधानमंत्री
फ्रांस में नया प्रधानमंत्री चुनने के लिए एनपीएफ गुट में धुर वामपंथी गुट LFI और सोशलिस्ट पार्टियों के बीच खींचतान है। एनपीएफ में एलएफआई सबसे बड़ी पार्टी है और उसके बाद सोशलिस्ट पार्टियों का नंबर है। एलएफआई का मानना है कि सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से प्रधानमंत्री पद पर उसकी दावेदारी है। वहीं सोशलिस्ट पार्टियां धुर वामपंथी पार्टी के कैंडिडेट को समर्थन देने को तैयार नहीं हैं। माना जा रहा है कि मैक्रों भी एक उदार कैंडिडेट के पक्ष में हैं।
Monsieur le Premier ministre,
Cher @GabrielAttal,Pour faire avancer le pays dans un moment si décisif, dans un esprit commun de responsabilité et de dépassement, vous avez mis toute votre énergie au service des Français.
La France au cœur.
Merci infiniment. pic.twitter.com/hGrTpC4yhU
— Emmanuel Macron (@EmmanuelMacron) July 16, 2024
प्रधानमंत्री पद पर जारी रस्साकशी के बीच सोशलिस्ट पार्टियों ने 73 वर्षीय ह्यूगेटो बेलो को समर्थन देने से इनकार कर दिया। बेलो पूर्व कम्युनिस्ट सांसद रहे हैं और फ्रांस की ओवरसीज टेरीटरी ऑफ लॉ रीयूनियन के क्षेत्रीय परिषद के प्रेसिडेंट हैं। दूसरी ओर एलएफआई ने 73 वर्षीय लॉरेंस तुबियाना की दावेदारी को खारिज कर दिया था। तुबियाना, अर्थशास्त्री हैं और सोशलिस्ट पार्टियों के साथ कम्युनिस्ट पार्टी और ग्रीन पार्टी ने उनका नाम आगे बढ़ाया था।
मैक्रों की पार्टियों से अपील
राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने राजनीतिक पार्टियों से खींचतान खत्म करके प्रधानमंत्री पद पर सहमति बनाने की अपील की है। मैक्रों की अपील के बाद रिपब्लिकन पार्टियों पर जिम्मेदारी बढ़ गई है। फ्रांस में रिपब्लिकन फ्रंट काफी प्रभावी है और इस फ्रंट में मैक्रों की पार्टी ENS और एनपीएफ हैं, जिन्होंने संसदीय चुनावों में धुर दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली (RN) को रोकने के लिए गठबंधन बनाया था।
इस गठबंधन के बाद संसदीय चुनावों के दूसरे राउंड में 200 से ज्यादा कैंडिडेट्स ने अपना नाम वापस ले लिया था, ताकि गैर दक्षिणपंथी वोटों का विभाजन रोका जा सके और एक सीट पर RN कैंडिडेट के खिलाफ एक कैंडिडेट ही मुकाबले में रहे। इस गठबंधन का इतना प्रभाव रहा कि नेशनल रैली पार्टी तीसरे नंबर पर चली गई हालांकि उसे सबसे ज्यादा वोट शेयर मिला।
फ्रांस की राजनीतिक व्यवस्था में राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है। इसके बाद प्रधानमंत्री को संसद में बहुमत साबित करना होता है। इसका मतलब यह है कि प्रधानमंत्री उसी पार्टी या ब्लॉक का होगा जो संसद को कंट्रोल करता है।