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Haryana Election 2024 के चुनावी महाभारत में कौन उन्नीस…कौन बीस?

Bharat Ek Soch : हरियाणा में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासत तेज हो गई है। इसे लेकर राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार तेज कर दिया। सत्ता पाने के लिए अनगिनत तिकड़म और उलटफेर की कहानियां हरियाणा में तैयार हुईं। आइए जानते हैं कि हरियाणा के चुनावी महाभारत में कौन उन्नीस…कौन बीस?
08:57 PM Sep 29, 2024 IST | Deepak Pandey

Bharat Ek Soch : हरियाणा के दो करोड़ से अधिक मतदाता 5 अक्टूबर को प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों के लिए मतदान करेंगे, जिसमें 8821 वोटर 100 साल से अधिक उम्र के हैं। वहीं, पांच लाख 24 हजार से अधिक वोटरों की उम्र 18 से 19 साल के बीच है, जो पहली बार मतदान करेंगे। इस आंकड़े का जिक्र इसलिए जरूरी है, क्योंकि बहुत कम वोटर ऐसे हैं, जिन्होंने अलग हरियाणा राज्य के लिए संघर्ष देखा, वहां के निकले नेताओं को राजनीति के शिखर पर पहुंचते देखा, सत्ता के लिए एक-दूसरे को निपटाते देखा। पुत्र मोह में नेताओं को धृतराष्ट्र जैसा बनते देखा। हरियाणा की युवा पीढ़ी को शायद हरियाणा की राजनीति के रंगों के बारे में पता नहीं होगा। सत्ता के लिए अनगिनत तिकड़म और उलटफेर की कहानियां हरियाणा में तैयार हुईं। हरियाणा की राजनीति में अब कौन सी पटकथा तैयार होने वाली है? सूबे में कांग्रेस की जीत को लेकर आखिर भूपेंद्र सिंह हुड्डा इतने कॉन्फिडेंट क्यों हैं? क्या राजनीति के चतुर खिलाड़ी हुड्डा के मन में कोई सवाल या अगर-मगर नहीं होगा? वो किन समीकरणों पर गुना-भाग कर रहे होंगे? क्या कुमारी शैलजा को लेकर उन्हें कोई टेंशन नहीं होगी? क्या किसी बड़े भरोसे के बाद कुमारी शैलजा भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ मंच पर आईं? हरियाणा में बीजेपी की सियासी जमीन मजबूत हुई या कमजोर? प्रधानमंत्री मोदी को क्यों लग रहा है कि जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे कांग्रेस पस्त पड़ती जा रही है? हरियाणा चुनाव के नतीजों को लेकर नायब सिंह सैनी रिलैक्स हैं या टेंशन में? हरियाणा में नौ साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले मनोहर लाल खट्टर को आखिर बीजेपी ने अचानक पीछे क्यों किया? हरियाणा के नतीजे बीजेपी की भविष्य की राजनीति के लिए कितने अहम हैं?

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यूपी-बिहार में जब भी किसी को हिचकी आती है, तो गाहे-बगाहे लोग कहने लगते हैं कि कोई याद कर रहा होगा, इसलिए हिचकी आ रही होगी। हंसी-मजाक में पुराने यार-दोस्तों का जिक्र भी हिचकियों के बहाने हो जाया करता है। ये तो हुई कहने-सुनने वाली बात। डॉक्टर हिचकी को शरीर की एक प्रक्रिया और गंभीर बीमारियों के संकेत के रूप में देखते हैं। डाइजेशन या रेस्पिरेटरी सिस्टम में गड़बड़ी और अधिक हलचल को भी हिचकी की वजह माना जाता है। लेकिन, वोट बैंक पॉलिटिक्स में हिचकियों को किस तरह से देखा जाए? संभवत: राजनीति में एक दूसरे की टांग-खिंचाई और पार्टी में वर्चस्व के लिए हलचल को हिचकियों के तौर पर देखा जा सकता है। ऐसे में हरियाणा पॉलिटिक्स को हिचकियों के एंगल से समझने की कोशिश करते हैं।

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BJP-कांग्रेस में कांटे की टक्कर

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हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है। कांग्रेस के महारथियों का आकलन है कि सूबे में पिछले 10 साल से बीजेपी की सरकार है। ऐसे में सरकार विरोधी लहर का फायदा कांग्रेस को मिलेगा, जिसका पहला संकेत लोकसभा चुनाव के नतीजों में देखा जा रहा है। हरियाणा में अभी कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं। उनकी बात इस हद तक सुनी जा रही है कि पार्टी के सीनियर नेताओं के चाहने के बाद भी आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस का हरियाणा में गठबंधन नहीं हो पाया। अब भीतरखाने भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी हिसाब लगा रहे होंगे कि अगर सूबे की 90 सीटों में से कांग्रेस के खाते में 65 से अधिक आईं तो क्या होगा? 55 सीटें आईं तो किस तरह के समीकरण बनेंगे। बहुमत से कुछ सीटें ऊपर-नीचे होने पर क्या होगा? अगर चुनावी सभाओं में जुटने वाली भीड़ वोटबैंक में तब्दील नहीं हुई तो क्या होगा?

कांग्रेस में CM पद के लिए दो बड़े दावेदार

हरियाणा कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के दो बड़े दावेदार हैं- एक भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दूसरी कुमारी शैलजा। भूपेंद्र सिंह हुड्डा अच्छी तरह जानते हैं कि सीटें कम होने पर मुख्यमंत्री पर फैसले में आलाकमान की भूमिका बढ़ जाएगी। उनके सामने साल 2004 की तस्वीर भी होगी, जब मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार भजनलाल थे और आलाकमान ने उनके नाम पर मुहर लगा दी। राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी हुड्डा ये भी जानते हैं कि हरियाणा में किस तरह भगवत दयाल शर्मा और देवीलाल की लड़ाई में बंसीलाल को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गई। ऐसे में भूपेंद्र सिंह हुड्डा भीतरखाने बीजेपी से अधिक कांग्रेस की अंदरुनी गुटबाजी से चिंतित होंगे? कुछ दिनों पहले तक कुमारी शैलजा को लेकर कई तरह की अफवाहों का बाजार गर्म था। मनोहर लाल खट्टर ने तो उन्हें बीजेपी में आने तक का ऑफर दे दिया। लेकिन, अब कुमारी शैलजा ने सभी अगर-मगर, किंतु-परंतु पर ये कहते हुए पूर्ण विराम लगा दिया कि मेरी रगों में कांग्रेस का खून है। जैसे मेरे पिता कांग्रेस के तिरंगे में लिपटकर गए थे, वैसे मैं भी जाऊंगी। असंध विधानसभा क्षेत्र की चुनावी रैली में राहुल गांधी की एक ओर भूपेंद्र सिंह हुड्डा खड़े दिखे तो दूसरी ओर कुमारी शैलजा। इस विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान पहली बार दोनों एक साथ, एक चुनावी मंच पर सामने आए। अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या किसी बड़े भरोसे के बाद कुमारी शैलजा ने अपनी नाराजगी खत्म कर दी या फिर पार्टी हित में अपना गुस्सा थूक दिया।

किसानों के हाथों में सत्ता की चाबी!

अगर 8 अक्टूबर को हरियाणा में कांग्रेस को बहुमत मिल जाता है तो आलाकमान के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि सूबे के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किसे बैठाया जाए। कांग्रेस आलाकमान के सामने मध्य प्रदेश का भी उदाहरण होगा, जहां कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच लगातार टकराव चलता रहा। बाद में सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी के रथ पर सवार हो गए और कमलनाथ की सरकार भी गिर गई। इसी तरह छत्तीसगढ़ में पांच साल भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच शीत युद्ध चलता रहा, जिसकी वजह से 2018 में छत्तीसगढ़ भी कांग्रेस के हाथ से निकल गया। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच टकराव किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में हिसाब लगाया जा रहा है कि हरियाणा में कांग्रेस किस रास्ते आगे बढ़ेगी? कांग्रेस आलाकमान भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच सुलझ का टिकाऊ रास्ता किस तरह निकलेगा। लेकिन, इसकी नौबत तब आएगी, जब हरियाणा में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलेगा। फिलहाल, बीजेपी हरियाणा में जीत की हैट्रिक लगाने की उम्मीद पाले हुए है। बीजेपी महारथियों को लगता है कि मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी सूबे के बड़े ओबीसी वोटबैंक को लुभाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन, सीएम सैनी को भीतरखाने डर सता रहा होगा कि कहीं अग्निवीर और किसानों का मुद्दा जीत की राह में स्पीड ब्रेकर न बन जाए? वैसे भी हरियाणा में सत्ता की चाबी किसानों के हाथों में मानी जाती है तो भारतीय सेना में हर 10वां जवान हरियाणा की मिट्टी से ताल्लुक रखता है।

सीएम नायब सिंह सैनी के लिए बड़ी चुनौती

शायद नायब सिंह सैनी के पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं है, लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि लोकसभा चुनाव से पहले एकाएक हरियाणा के मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल जाएगी। ऐसे अगर हरियाणा में तीसरी बार बीजेपी सत्ता में वापसी करती है तो नायब सिंह सैनी की गिनती पार्टी के रिजल्ट ओरिएंटेड नेताओं में होने लगेगी। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बनाए रखना पार्टी के सीनियर नेताओं की मजबूरी बन जाएगी। लेकिन, नायब सिंह सैनी ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि हरियाणा बीजेपी में ही कई ऐसे सीनियर नेता हैं, जो उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर चैन से नहीं बैठने देंगे। 2014 में हरियाणा में प्रचंड जीत के बाद बीजेपी ने अचानक से पहली बार के विधायक मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया। तब सूबे में बीजेपी के भीतक के ज्यादातर नेताओं को उनके बारे में जानकारी नहीं थी। 9 साल तक खट्टर ने हरियाणा को चलाया और अब वो मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। लेकिन, खट्टर हरियाणा चुनाव प्रचार में बीजेपी की ओर से फ्रंटफुट पर क्यों नहीं दिख रहे हैं? यहां तक की बड़े नेताओं की रैलियों के मंच पर भी नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि खट्टर की राजनीति अब ढलान की ओर जा रही है या फिर उन्हें एक खास रणनीति के तहत पीछे रखा गया है?

यह भी पढ़ें : हरियाणा में विरासत की सियासत के बीच कैसे चली सत्ता के लिए तिकड़मबाजी?

कइयों के लिए चुनाव करो या मरो जैसा

हरियाणा के सियासी अखाड़े से जुड़े हर महारथी को हिचकियां आ रही होंगी। कई तरह के संशय और असमंजस के दौर से गुजर रहा होगा। कोई भी आराम बैठने की स्थिति में नहीं है। कोई भी अपनी जीत को लेकर ओवरकॉन्फिडेंट नहीं है। क्योंकि, हरियाणा के लोगों ने समय-समय पर दिग्गजों का दंभ तोड़ा है। ऐसे में किसी को जीत के बाद बनने वाले समीकरणों की चिंता सता रही है तो किसी को चुनाव में हार के बाद अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर। वहीं, बीजेपी के बड़े रणनीतिकार जोड़-घटाव कर रहे होंगे कि अगर हरियाणा में प्रचंड बहुमत से कमल खिल गया तो महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी कार्यकर्ताओं का जोश हाई हो जाएगा और कमल खिलाने में थोड़ी आसानी होगी। साथ ही लोकसभा चुनाव के बाद कार्यकर्ताओं में आई सुस्ती खत्म करने का बड़ा मौका मिल जाएगा। वहीं, अगर नतीजे बीजेपी अनुकूल नहीं रहे तो अगले चुनावों में रणनीति पर नए सिरे से होमवर्क करना पड़ेगा? हरियाणा में विरासत की सियासत करने वाले खानदान भी हैरान-परेशान हैं। उन्हें डर सता रहा है कि अगर लोगों ने खारिज कर दिया तो क्या होगा? अगर खुद की सीट बच भी गई तो सूबे की सियासत में उनका रसूख मिट्टी में मिल जाएगा? ऐसे में 2024 का हरियाणा चुनाव बहुतों के लिए करो या मरो जैसा है, जिसमें फैसला लोगों को करना है कि उन्हें किस तरह की सरकार चाहिए?

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