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बच्चों के लिए वरदान बनेगी मुख्यमंत्री बाल थैलेसीमिया योजना, जानें क्या-क्या मिलेगा लाभ?

Chief Minister Child Thalassemia Scheme: बिहार के थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के लिए खुशखबरी है। ऐसे बच्चों के लिए बिहार सरकार ने एक खास योजना शुरू की है। आपको बता दें कि इस बीमारी के इलाज पर काफी पैसा खर्च होता है। लेकिन अब सरकार ने पहल करते हुए बच्चों की सुध ली है। खबर में जानते हैं योजना के बारे में।
10:46 PM Aug 06, 2024 IST | Parmod chaudhary
बच्चों के लिए वरदान बनेगी मुख्यमंत्री बाल थैलेसीमिया योजना  जानें क्या क्या मिलेगा लाभ

Child Thalassemia Scheme: (अमिताभ कुमार ओझा) थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए बिहार सरकार ने आज एक बड़ी पहल की है। बिहार कैबिनेट की मंगलवार को हुई बैठक में 'मुख्यमंत्री बाल थैलेसीमिया योजना' को मंजूरी दी गई है। बिहार के हजारों थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों और उनके अभिवावकों के लिए यह बड़ी राहत वाली खबर है। थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को हर 10 से 15 दिनों के बाद ब्लड चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। यही नहीं, एक बच्चे के इलाज पर 15 से 20 लाख रुपये खर्च आता है। थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के लिए काम कर रहे पटना के मुकेश हिसारिया के अनुसार बिहार में वैसे तो इस गंभीर बीमारी से पीड़ित बच्चों की संख्या हजारों में है।

100 बच्चे किए गए हैं रजिस्टर्ड

उनकी संस्था के पास ऐसे 100 रजिस्टर्ड बच्चे हैं, जो इस गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को धन्यवाद दिया। क्योंकि अब उनका इलाज हो सकेगा।थैलेसीमिया एक जेनेटिक बीमारी है, जो माता-पिता से बच्चों को लगती है। इस बीमारी में बच्चों के शरीर में हीमोग्लोबिन नहीं बनता। वे सिवियर एनीमिया के शिकार होते हैं। ऐसे बच्चों को हर दस से पंद्रह दिनों में खून चढ़ाना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि इसका इलाज नहीं। इलाज तो है, लेकिन काफी खर्चीला। एक बच्चे के इलाज पर 15 से 20 लाख का खर्च आता है।

पटना में 3 बार लग चुके हैं कैंप

पटना में मां वैष्णो देवी सेवा समिति की तरफ से पहली बार 23 फरवरी 2020 और उसके बाद 14 नवंबर 2022 व इस साल 5 जनवरी को थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के लिए कैंप लगाया गया था। इन कैंपों के जरिए बच्चों को उनके अभिभावकों के साथ बुलाया गया और उनका HLA MATCHING कराया गया। संस्था के मुकेश हिसारिया के अनुसार पीड़ितों के भाई या बहन के ब्लड से ही उनका मैचिंग कराया जाता है या फिर बोन मेरो ट्रांसप्लांट होता है। जिसके बाद बच्चे को बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती। अब तक ऐसे 47 बच्चों का बोन मेरो ट्रांसप्लांट किया जा चुका है। इन बच्चों के ट्रांसप्लांट में दो संस्थाओं का प्रयास रहा है।

दो संस्थाएं बच्चों के लिए कर रहीं काम

इनमें DATRI भारतीय संस्था है, जबकि DKMS जर्मनी की। मुकेश हिसारिया और उनकी संस्था ने मुख्यमंत्री के लोक संवाद में भी कई बार थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों का मामला उठाया था। मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में स्वास्थ्य विभाग बिहार सरकार एवं क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी) वेल्लोर तमिलनाडु द्वारा संयुक्त रूप से फैसला लिया गया है। जिसके अनुसार बिहार के बच्चों (12 वर्ष या उससे कम उम्र) में पाए जाने वाले बीटा थैलेसीमिया मेजर का निरोधात्मक ऊपचार बोन मेरो ट्रांसप्लांटेशन द्वारा करवाया जाएगा। इसके लिए मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष से अनुदान दिया जाएगा। नई योजना 'मुख्यमंत्री बाल थैलेसीमिया' को मंजूरी दी गई है।

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