आरा के प्यार में डूबे पवन सिंह ने तोड़ा था आसनसोल का दिल, अब Karakat पर आखिर क्यों हुए फिदा?
Bihar Lok Sabha Election 2024: कहानी थोड़ी फिल्मी है। सुपरस्टार ने किसी से प्यार किया, जिसकी वजह से उसका दिल तोड़ दिया जिसने उसे गले लगाना चाहा। लेकिन जब 'सच्चा प्यार' नहीं मिला तो अब 'अरेंज मैरिज' करने चल दिया है। यह स्क्रिप्ट कुछ-कुछ भोजपुरी स्टार पवन सिंह पर सटीक बैठती दिख रही है। पवन सिंह (Bhojpuri Superstar Pawan Singh) को बीजेपी ने पश्चिम बंगाल की आसनसोल से टिकट दिया, लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया क्योंकि उनके दिल में बसा था बिहार का आरा।
मगर आरा से चुनाव लड़ने का सपना अधूरा ही रह गया। अब आरा से महज 70 किलोमीटर दूर काराकाट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। अभी भी बीजेपी नेता पवन सिंह ने ट्वीट कर ऐलान कर दिया कि वह मां का सपना पूरा करने के लिए इस सीट से चुनाव लड़ेंगे। वो भी तब जबकि एनडीए सीट शेयरिंग में बीजेपी ने यह सीट उपेंद्र कुश्वाहा की पार्टी RLJD को दे दी है। मतलब संकेत साफ हैं कि भोजपुरी सुपरस्टार 'हीरो' की तरह अकेले ही किला फतह निकलने के लिए कमर कस चुका है। मगर यह दांव कितना सही साबित होगा, यह समय ही बताएगा।
आरा से क्यों जताई थी इच्छा
पवन सिंह का जन्म आरा में हुआ है और राजपूत समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सुपर स्टार को पूरा भरोसा था कि आरा की जनता आसानी से उन्हें लोकसभा भेज देगी। आरा लोकसभा सीट में 7 विधानसभा सीट हैं और यहां 3 लाख से ज्यादा वोट अकेले राजपूत वोटर हैं। इसका सीधा फायदा पवन सिंह उठाना चाहते थे।
आरा में क्यों नहीं की बगावत
अब सवाल यह भी उठता है कि बीजेपी से अलग राह बनानी ही थी तो पवन सिंह ने आरा के बजाय काराकाट को क्यों चुना? 'बगावत' ही करनी थी तो अपने घर से बढ़िया मैदान भले क्या होता! जानकारों की मानें तो बिहार का राजपूत बीजेपी का मजबूत वोट बैंक बनकर उभर रहा है। बिहार के कई दिग्गज नेता इसी समुदाय से हैं। यहां जदयू का अपना वोट बैंक है, जो बीजेपी के साथ रहता। पासवान जाति के वोट भी उसी को मिल सकते हैं।
R.K. Singh की छवि
पूर्व IAS अधिकारी राजकुमार सिंह 2014 में यहां से चुनाव जीते थे। 2019 में भी उन्होंने जीत दोहराई। अब फिर से वह तैयार हैं। 1990 के दशक में पटना के डीएम के तौर पर आडवाणी का रथ रोकने का काम उन्होंने ही किया था। जानकारों का कहना है कि आरके सिंह ने अपने संसदीय क्षेत्र में काफी काम कराए हैं। केंद्रीय मंत्री के तौर काम करते हुए वह कई योजनाओं को आरा तक लेकर आए। इलाके में उनकी छवि ठीक वैसी ही है, जैसे अपने संसदीय क्षेत्र में नितिन गडकरी की। उनकी दमदार छवि के आगे अक्सर विवादों में रहने वाले पवन सिंह के लिए चुनौती काफी कड़ी हो जाती।
अब बात काराकाट की
पवन सिंह के सामने धर्मसंकट यह था कि चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। मगर आसनसोल की सीट ठुकरा चुके थे और आरा में दाल गलती नहीं दिख रही थी। तो आरा से सटे काराकाट में अपनी लोकप्रियता के भरोसे चुनाव में किस्मत आजमाने का फैसला कर लिया है। मगर काराकाट एनडीए का गढ़ रहा है, पिछले तीन बार से यहां एनडीए सांसद ही है। यहां तक कि खुद उपेंद्र कुश्वाहा यहां से पिछला चुनाव बीजेपी उम्मीदवार से हार गए थे। इस बार बीजेपी ने यह सीट कुश्वाहा को दे दी है। इस सीट को 'कुश्वाहा लैंड' भी कहा जाता है। इसके अलावा कुर्मी और सवर्ण वोटर यहां प्रत्याशियों का भाग्य तय करते हैं।
इस सीट पर 2 लाख से ज्यादा राजपूत वोटर्स भी हैं, शायद इसी वजह से पवन सिंह ने यहां से चुनाव लड़ने का फैसला किया है। मगर 3 लाख यादव वोटर भी हैं, जो आरजेडी के लिए प्लस प्वाइंट है। साथ ही उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि यहां 2 लाख से ज्यादा वैश्य और 75 हजार से ज्यादा ब्राह्मण वोटर भी है।