स्पीड में 'बुलेट की बाप' होगी ये ट्रेन, रेल मंत्री ने शेयर किया हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक का वीडियो
India's First Hyperloop: रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट शेयर किया, जिसमें उन्होंने बताया कि भारत का पहला हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक बनकर तैयार हो है। भारतीय रेलवे ने आईआईटी मद्रास के साथ मिलकर भारत के पहले 410 मीटर हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक के पूरा को पूरा कर लिया गया है। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने गुरुवार को टेस्ट ट्रैक का एक वीडियो शेयर करते हुए इसकी जानकारी दी। आइए जानते है कि हाइपरलूप क्या है और यह कैसे काम करता है?
सोशल मीडिया पर शेयर किया पोस्ट
केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने अपने एक्स पर एक पोस्ट किया है, जिसमें उन्होंने टीम रेलवे, आईआईटी-मद्रास की आविष्कार हाइपरलूप टीम और ट्यूट्र (एक इनक्यूबेटेड स्टार्टअप) की तारीफ करते हुए लिखा, 'भारत का पहला हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक (410 मीटर) बनकर तैयार हो गया है। इस ट्रैक की टेस्टिंग 100 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से की गई थी और अब इसे 600 किलोमीटर की स्पीड के लिए टेस्ट किया जाएगा। बता दें कि यह पहल आईआईटी मद्रास की आविष्कार हाइपरलूप टीम और संस्थान में विकसित एक स्टार्टअप TuTr के बीच के एक संयुक्त प्रयास का नतीजा है। यहां हम आपके लिए वो पोस्ट शेयर कर रहे हैं।
Watch: Bharat’s first Hyperloop test track (410 meters) completed.
👍 Team Railways, IIT-Madras’ Avishkar Hyperloop team and TuTr (incubated startup)
📍At IIT-M discovery campus, Thaiyur pic.twitter.com/jjMxkTdvAd
— Ashwini Vaishnaw (@AshwiniVaishnaw) December 5, 2024
कहां से कहां तक है ट्रैक?
बता दें कि ये ट्रैक मुंबई-पुणे के बीच तैयार की जाने की उम्मीद है। इस सिस्टम को इस लक्ष्य के हिसाब से तैयार किया जाना है कि ताकि दोनों शहरों के बीच की यात्रा के समय को घटाकर सिर्फ 25 मिनट किया जा सकें।
क्या है हाइपरलूप?
2013 में एलन मस्क ने एक ऐसे सिस्टम के बारे में बात की थी, जिसने दुनिया भर के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा था। इस अवधारणा को वास्तविक बनाने के लिए भारत ने अपना प्रयास शुरू कर दिया और अब इस मेहनत का नतीजा सबके सामने है।
हाइपरलूप सिस्टम पॉड्स का इस्तेमाल प्रेशराइज्ड व्हीकल के रूप में उपयोग करता है। यह लो प्रेशर पर बनाए गए ट्यूबों के माध्यम से तेज वेलोसिटी के साथ ट्रैवल करने में मदद कर सकता है। ये पॉड एक स्टॉप से दूसरे स्टॉप पर सीधे जाता है और बीच के किसी भी स्टेशनों पर रुकता नहीं है। हाइपरलूप तो 24-28 यात्रियों को ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है।
हाइपरलूप सिस्टम में तीन आवश्यक कॉम्पोनेंट- ट्यूब, पॉड और टर्मिनल होते हैं। ट्यूब एक बड़ा, सीलबंद लो प्रेशर सिस्टम ( एक लंबी सुरंग) होता है। वहीं अगर पॉड की बात करें तो यह एक कोच के जैसा होता है, जो मैग्नेटिक प्रोपल्शन का इस्तेमाल करके ट्यूब के अंदर लो एयर रेजिस्टेंस या घर्षण को आसान बनाता है। इससे इनको ट्यूब के अंदर मूव कराना आसान हो जाता है।
टर्मिनल की बात करें तो यह पॉड के अराइवल और डिपार्चर को मैनेज करने में मदद करता है। बता दें कि हाइपरलूप वैक-ट्रेन से अलग है, क्योंकि यह एयरोफॉयल से लिफ्ट और पंखे द्वारा प्रोपल्शन देने के लिए ट्यूब के अंदर एक खास एयर प्रेशर पर निर्भर करता है।
कहां-कहां है ये तकनीकी
हाइपरलूप सिस्टम की सुविधा चीन और यूरोप में उपलब्ध है। चीन की सबसे बड़ी मिसाइल निर्माता कंपनी ने मैग्लेव हाइपरलूप सिस्टम पर काम किया है। चीन की इस ट्रेन को टी-फ़्लाइट या हाई-स्पीड फ़्लाइंग ट्रेन भी कहा जाता है। इस देश के शांक्सी प्रांत में 1.24 मील की टेस्ट लाइन बनाई गई है। इस टेस्ट लाइन पर चीन की हाइपरलूप ट्रेन 387 मील प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ती नजर आई है।
इसके अलावा यूरोप में अब तक का सबसे लंबा हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक खोल दिया गया है। 2025 तक इसका 10000 किलोमीटर लंबा ट्रैक तैयार किए जाने की बात सामने आई है।
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