Kadak Singh Review: प्यार, भरोसा, रिश्ते और धोखेबाजी की कहानी है 'कड़क सिंह', फिल्म की आत्मा बने पंकज त्रिपाठी
Kadak Singh Review By Ashwini Kumar: वर्ल्ड सिनेमा से लेकर हिंदी सिनेमा तक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म का एक फॉर्मेंट होता है। आमतौर फिल्म में एक कत्ल के बाद उसकी गुत्थी सुलझाने की कोशिश होती है। ऐसी फिल्मों में हू डन इन वाला फॉर्मेट होता है, जिसमें स्क्रीन के दूसरी ओर बैठी हुई ऑडियंस अपने-अपने दिमाग में केस को सुलझा रही होती है। पिंक और लॉस्ट जैसी फिल्मों से बेहद नाम कमा चुके राइटर डायरेक्टर अनिरुद्ध रॉय चौधरी की कड़क सिंह इस फॉर्मेट को तोड़कर, उस इंसान से यह गुत्थी सुलझवाती है, जो सुसाइड की कोशिश के बाद अपनी याद्दाश्त खो चुका है।
कई उलझी हुई कहानियों की कहानी है कड़क सिंह
कड़क सिंह कहानी है कई उलझी हुई कहानियों की, जिसमें एक पिता है, जो बीवी की मौत के बाद बच्चों के सामने अपना प्यार नहीं जता पाता। डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल क्राइम में काम करने वाले ए. के. श्रीवास्तव अपने काम को लेकर जुनूनी हैं। उनके बच्चे उनको सख्त मिजाज की वजह से कड़क सिंह बुलाते हैं। बेटा, मां की मौत और पिता की सख्ती के बीच बहक रहा है। बेटी अपने भाई को नशे के चंगुल से निकालने की जद्दोजहद में अकेले ही जुटी हुई है। इसी बीच बेटी साक्षी को अपना कड़क सिंह पिता, एक शेडी होटल में एक लड़की के साथ दिखता है। इसके बाद पिता शर्मिंदगी से सुसाइड की कोशिश करता है। कड़क सिंह की असली कहानी इसके बाद से शुरु होती है।
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कई इल्जामों की सुई है श्रीवास्तव पर
आईसीयू वॉर्ड में पड़े ए. के. श्रीवास्तव की याद्दाश्त जा चुकी है। बेटी साक्षी उसे उनके बीच की तल्खी की वजह याद दिलाने की कोशिश करती है, गर्लफ्रेंड नैना उसे उनके बीच की करीबियां याद दिलाना चाहती है और डिपॉर्टमेंट का बॉस उसे याद दिलाना चाहता है एक चिट-फंड घोटाले का केस, जिसके चलते उसी डिपॉर्टमेंट का एक और साथी सुसाइड कर चुका है। इस केस में इल्जामों की सुई, सुसाइड की कोशिश कर चुके श्रीवास्तव के ऊपर घूमती है। हॉस्पिटल के बेड पर बैठे, अपनी यादें भूल चुके कड़क सिंह पिता को रिश्तों को पहचानना है और इस केस को सुलझाना है, जिसमें उसे सिर्फ उसकी नर्स मिमी पर भरोसा है।
कई सारे विषय साथ लेकर चलती है फिल्म
रितेश और विराफ के साथ अनिरुद्ध रॉय चौधरी ने कड़क सिंह की इस कहानी में इमोशनल ड्रामे और एक्शन की छौंक का सहारा नहीं लिया है। बल्कि कहानियों का एक ऐसा जाल बुना है, जिसे सुलझाने के लिए कहानियों के बीच से ही होकर गुजरना है। फ्लैशबैक में एक ही सेक्वेंस को कई-कई बार अलग-अलग नजरिए से पेश किया गया है, जो आपको थोड़ा रिपीट मोड लग सकता है, लेकिन हर बार एक नए ट्विस्ट के साथ। दो घंटे सात मिनट की यह फिल्म न लंबी है, ना बहुत तेज रफ्तार से बढ़ती है, बल्कि यह अपने ही अंदाज से चलती है। यह फिल्म कई सारे विषयों को साथ लेकर चलती है।
पंकज त्रिपाठी ने खींची नई लकीर
कड़क सिंह की आत्मा हैं पकंज त्रिपाठी। वह न तो इसमें मिर्जापुर वाले कालीन भैया सरीखे पिता लगते हैं और न तो फुकरे की कॉमेडी वाले पंडित जी, न ही गुंजन सक्सेना वाले पिता बल्कि कड़क सिंह में वह एक नई लकीर खींचते हैं। वहीं साक्षी बनीं संजना सांघी फिल्म दर फिल्म निखर रही हैं। पंकज त्रिपाठी का साथ पाकर संजना की परफॉरमेंस में और शॉर्पनेस साफ महसूस की जा सकती है। पंकज त्रिपाठी की महिला मित्र नैना बनी बांग्लादेश की एक्ट्रेस जया कड़क सिंह का सबसे मुलायम अहसास है। उनकी आंखें और खामोशी बोलती हैं। जी5 पर इस वीकेंड बिंज वॉच के लिए यह अच्छा ऑप्शन है।
कड़क सिंह को 3.5 स्टार।