Pushpa 2 Review: फिल्म नहीं सिनेमा का त्योहार है 'पुष्पा', लेकिन इस मामले ने कर दिया निराश!
Pushpa 2 Review: 'पुष्पा' राज को फायर समझे क्या? फायर नहीं वाइल्ड फायर है पुष्पा। बस फिल्म को देखने के बाद ऑडियंस को कुछ यही फील होने वाला है। फिल्म की कहानी में जबरदस्त एक्शन है, ड्रामा है, प्यार है, इमोशन्स हैं लेकिन सबसे बड़ी बात पुष्पा की वाइल्ड फायर है जिसका जवाब किसी भी दुश्मन के पास नहीं था। पुष्पा सिर्फ एक फिल्म नहीं लगती बल्कि ऐसा लगता है जैसे पूरा का पूरा त्योहार है। फिल्म की कहानी पहले पार्ट से आगे बढ़ती है। लेकिन एक डिपार्टमेंट है जहां डायरेक्टर और मेकर्स थोड़ा पीछे रह गए हैं। आखिर क्या है फिल्म की कहानी, चलिए आपको बताते हैं।
कैसी है फिल्म की कहानी?
एक से बढ़कर एक डायलॉग्स, सीट से उठाकर तालियां बजवाने वाला एक्शन, इमोशन्स की भरमार है 'पुष्पा: 2' की कहानी। फिल्म की शुरुआत होती है अल्लू अर्जुन के राज से। पूरा का पूरा स्टेट पुष्पा के कंट्रोल में है। स्टेट के सीएम से लेकर मंत्रियों तक हर कोई पुष्पा के इशारों पर चलता है लेकिन पुष्पा किसके इशारों पर चलता है? ये देखने वाली बात है। दरअसल फिल्म की कहानी में पुष्पा अपनी पत्नी और मां के साथ खुशहाल है, उसका बिजनेस दिन दोगुनी रात चोगुनी तरक्की कर रहा है। कैसे भंवर सिंह शेखावत की नाक के नीचे से पुष्पा लाल चंदन की लकड़ियों की सप्लाई करता है और करोड़ों नोट छापता है, फिल्म में यही कुछ दिखाया गया है।
'पुष्पा' का वीक प्वाइंट
हालांकि पुष्पा की कमजोरी भी है और वो है उसका परिवार। पुष्पा को बाप-खानदान का नाम नहीं मिला, बस यही उसका सबसे बड़ा वीक प्वाइंट है। वो अपने खानदान से प्यार तो करता है लेकिन ऊपर से ऐसा दिखाता है जैसे उसे फर्क नहीं पड़ता। फिल्म की कहानी शुरु होती है पुष्पा और भंवर सिंह की उसी दुश्मनी से जहां से पहला पार्ट खत्म हुआ था। भंवर सिंह हरियाणा से ट्रांसफर लेकर आया है, ऐसे में उसका सबसे बड़ा मकसद है पुष्पा के इस गैरकानूनी धंधे को रोकना और उसे पुलिस के हाथों रंगे हाथों पकड़ना। पूरी फिल्म में वो लाख कोशिशें करता है कि वो अपने मकसद में कामयाब हो जाए।
पूरी फिल्म में पुष्पा अपने 'झुकूंगा नहीं' वाले एटीट्यूड में रहता है। लेकिन अपने परिवार के हाथों वो मजबूर हो जाता है। जब-जब फिल्म में पुष्पा रोता है वो सिर्फ अपने परिवार के लिए रोता है। फिल्म में कुछ दृष्य ऐसे हैं जिन्हें देखकर आपकी आंखों से भी आंसू आ जाएंगे। खासकर अगर बात फिल्म की एंडिंग की हो तो आप सिनेमाघरों से रोते हुए बाहर निकल सकते हैं। फिल्म की कहानी में वो सबकुछ है जो ऑडियंस को पूरे 3 घंटे 21 मिनट तक बांध कर रखेगी।
अल्लू-रश्मिका की बेहतरीन एक्टिंग
फिल्म में अल्लू अर्जुन और रश्मिका मंदाना के बीच की कैमिस्ट्री ने आग लगा दी है। फिल्म में सभी एक्टर्स ने जबरदस्त काम किया है लेकिन फहाद फासिल ने पूरी की पूरी महफिल ही लूट ली है। फिल्म में फहाद के काम ने ऑडियंस को कहने पर मजबूर कर दिया है कि अगर फिल्म में भंवर सिंह शेखावत के किरदार में फहाद नहीं होते तो फिल्म एकदम फीकी लगती।
फिल्म के गानों ने किया निराश
पुष्पा 1 में एक से बढ़कर एक गाने थे- ओ अंटावा, सामी, ए बिड्डा ये मेरा अड्डा। ऐसे में फिल्म के दूसरे पार्ट में भी दर्शकों को उम्मीद थी कि फिल्म के गानों में उतना ही मजा आएगा लेकिन अफसोस फिल्म के डांस मूव्स ने तो एक बार फिर दिल जीता है लेकिन गाने कुछ खास कमाल नहीं कर पाए हैं। फिल्म के गाने पहले पार्ट के आगे काफी फीके लगते हैं। फिल्म में एक्ट्रेस श्रीलीला का आइटम नंबर भी डाला गया है लेकिन 'किसिक' समांथा के सॉन्ग के आगे चीनी कम ही है। हालांकि अगर बस गानों को छोड़ दिया जाए तो कुल मिलाकर फिल्म एक ब्लॉकबस्टर है। डायरेक्टर ने एकदम पैसा वसूल फिल्म बनाई है।
फिल्म को 5 में से 4 स्टार
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