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Vedaa Movie Review: मास्टर पीस या मिस फायर? देखने से पहले जान लें कैसी है फिल्म?

Vedaa Movie Review: जॉन अब्राहम की फिल्म 'वेदा' रिलीज हो गई है। इस फिल्म को देखने से पहले एक बार रिव्यू पढ़ना जरूरी है ताकि आपके पैसे और समय दोनों बर्बाद न हों।
03:15 PM Aug 15, 2024 IST | Ishika Jain
vedaa movie review  मास्टर पीस या मिस फायर  देखने से पहले जान लें कैसी है फिल्म
Vedaa Movie Review

Vedaa Movie Review: (By Ashwani Kumar) जॉन अब्राहम, शारवरी वाघ, तमन्ना भाटिया और अभिषेक बनर्जी की एक्शन ड्रामा फिल्म 'वेदा' रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म को लेकर दावा किया जा रहा है कि ये सच्ची घटनाओं पर आधारित है। लेकिन जब आप इस फिल्म को देखेंगे तो एक पल के लिए आपको इस तर्क पर शक हो सकता है। फिल्म में हीरो और विलेन हाईकोर्ट में जिस तरह एक-दूसरे को मार रहे हैं, गोलियां चला रहे हैं, जज कुर्सियों के नीचे अपनी जान बचाने के लिए छिपे हुए हैं, साथ ही पुलिस इस दौरान नजर नहीं आती और जो पुलिस वाले दिखते हैं, वो भी हाईकोर्ट में गैंगस्टर के साथ मिलकर गोलियां चला रहे हैं।

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क्या है वेदा की कहानी?

फिल्म में ये सब देखकर तो ऐसा लग रहा है कि अगर ये सच में हुआ है तो वेदा एक मास्टर पीस है, नहीं तो वेदा वाकई एक मिस फायर है। फिल्म की कहानी की बात करें तो ये स्टोरी भारत की जाति व्यवस्था की बुराई को दर्शाती है। फिल्म शुरू होने से पहले इतना लंबा डिस्क्लेमर आता है कि किसी का भी पेशेंश जवाब दे सकता है। कहानी मेजर कोर्ट मार्शल गोरखा ऑफिसर से शुरू होती है। मेजर अभिमन्यु बाड़मेर आते हैं और उनकी लाइफ में वेदा नाम की लड़की की एंट्री होती है। वेदा छुआछूत, जात-पात, ऑनर किलिंग ये सब देख चुकी है। एक बड़ी जाति की लड़की के साथ घर से भागने पर उसके भाई को मार दिया जाता है। इतना ही नहीं भाई की गलती की सजा बहन को भी मिलती है। उसे मारने के लिए बड़ी जाति के प्रधान और उनकी सेना लगी हुई है।

फिल्म में पीछे छूटने लगती है कहानी

वेदा जहां बॉक्सिंग सीखकर खुद को मजबूत बनाना चाहती है। वहीं, मेजर अभिमन्यु- वेदा के अंदर की आग को देखकर, कोच बन उसे बॉक्सिंग सिखाता है। इतना ही नहीं वही उसे अपनी लड़ाई लड़ने के लिए कोर्ट तक पहुंचाता है। अभिमन्यु की पत्नी को आतंकियों ने मार दिया है और वो उनसे बदला ले चुका है। आप कहानी से जब जुड़ना शुरू करते हैं तो कुछ ऐसा होता है कि स्टोरी अपना वजूद खो देती है। जॉन को जहां तक खामोश और बिना एक्शन के दिखाया गया है, वहां तक फिल्म होल्ड करती है। लेकिन जब बैठक के प्रधान के गुंडों और वेदा-अभिमन्यु के बीच खेल शुरू होता है, तो कहानी पीछे छूटने लगती है।

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कैसी है स्टार्स की परफॉरमेंस

कुछ जगह एक्शन सही लगता है जैसे छोटे प्रधान के साथ वेदा का बदले वाला सीक्वेंस, लेकिन इसके बाद एक्शन ही एक्शन होता है। क्लाइमेक्स के 28 मिनट के दौरान फिल्म में लॉजिक नजर नहीं आता। जॉन ने एक्शन में तो जान फूंक दी है, लेकिन कहानी में जान नहीं है। वेदा बनकर शारवरी वाघ ने जो एक्सप्रेशन्स दिए हैं उसे आप निहारते रह जाएंगे। एक्शन में भी उन्होंने कमाल किया है। जॉन की खामोशी में भी गुस्से दिखाई दे रहा है। अभिषेक बनर्जी बढ़िया एक्टर हैं और जॉन के सामने लड़ते हुए वो कमजोर नहीं लगते।

वेदा को 2 स्टार।

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