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जल्द चांद पर होंगे भारतीय! मेगा रॉकेट 'सूर्य' तैयार होने के करीब... जानें क्या बोले ISRO चीफ

ISRO Chief S Somnath: सूर्य नामक मेगा रॉकेट जल्द तैयार हो जाएगा। यह दावा किया है इसरो चीफ एस सोमनाथ ने। उन्होंने कहा कि इस रॉकेट के जरिए भारतीय जल्द चांद पर जाएंगे। इसके अलावा इसरो चीफ ने भविष्य की प्लानिंग और उपग्रहों को लेकर भी अपनी रणनीति जाहिर की।
07:30 PM Jun 29, 2024 IST | Parmod chaudhary
जल्द चांद पर होंगे भारतीय  मेगा रॉकेट  सूर्य  तैयार होने के करीब    जानें क्या बोले isro चीफ
जल्द चांद पर होंगे भारतीय।

Mission Chandrayaan-4: इसरो चीफ एस सोमनाथ ने भविष्य के मिशनों और अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यानों को लेकर अपनी बात रखी है। एनडीटीवी के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने दावा किया कि मेगा रॉकेट सूर्य जल्द बनकर तैयार होगा। इस रॉकेट को भारतीयों को चांद पर ले जाने के लिए बनाया जा रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन पिछले साल चंद्रयान-3 की सफलता से उत्साहित है। इसके बाद फिर हमारी नजर चांद पर टिकी है। अब भारत की योजना प्राकृतिक उपग्रह के जरिए चांद पर मानव को भेजने की है। इसरो प्रमुख सोमनाथ ने बताया कि सूर्य अभी डिजाइन के अधीन है। उनकी योजना है कि निचले हिस्से के लिए इसका इंजन एलओएक्स (ऑक्सीजन का तरल रूप) और मीथेन पर आधारित बनाया जाए। वहीं, ऊपरी हिस्से के लिए इंजन को क्रायोजेनिक आकार दिया जाए।

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40 टन वजनी होगा हमारा पहला मेगा रॉकेट

भारत का मेगा रॉकेट सूर्य अब तक के रॉकेट्स से काफी बड़े आकार का होगा। लो अर्थ ऑर्बिट यानी पेलोड क्षमता 40 टन से भी अधिक होगी। यह मानव को अंतरिक्ष में भेजने के लिए जरूरी है। अंतरिक्ष उड़ानों में ऐसे प्रयोग किए जाने जरूरी होते हैं। सूर्य रॉकेट तैयार होने के बाद उनको उम्मीद है कि चांद की सतह पर भारतीय 2024 तक चले जाएंगे। अब तक भेजे गए मानव रहित यानों के बारे में पूछने पर सोमनाथ ने कहा कि तीन चरणों के साथ पुष्पक के छोटे संस्करण सुरक्षित ढंग से चांद पर लैंड कर चुके हैं। वे अब बड़ा संस्करण बनाने में जुटे हैं। उनको उम्मीद है कि बड़ा संस्करण छोटों से लगभग 1.6 गुना तक अधिक बड़ा होगा।

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पहले लैंडिंग के साथ इसकी टेस्टिंग होगी और बाद में इसे अंतरिक्ष में छोड़ा जाएगा। इसे 3 चरणों में लॉन्च किया जाएगा। यह पेलोड को ऊपर ले जाकर वापस ला सकता है। पेलोड रॉकेट से अधिक महंगा और किफायती है। इसे पुष्पक का यूज करके अंतरिक्ष में तैनात करना सही नहीं है। GSLV, PSLV, SSLV या LMV-3 का यूज इसका विकल्प हो सकता है। दोबारा इस्तेमाल होने वाले लॉन्च व्हीकल के जरिए पेलोड को अंतरिक्ष में भेजना काफी महंगा है। पहले भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के बारे में सोमनाथ ने कहा कि इसकी डिजाइनिंग का काम जारी है। पहला चरण 2028 तक तैयार हो जाएगा।

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