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इंद‍िरा गांधी का वो आख‍िरी चुनाव, ज‍िसमें सत्तारूढ़ पार्टी महज 31 सीटों पर स‍िमटी

Indira Gandhi last lok sabha election: सातवां लोकसभा चुनाव 1980 में हुआ था। जनता पार्टी से शिकस्त खाने के बाद इन चुनावों के साथ इंदिरा गांधी ने दिल्ली की गद्दी पर कमबैक किया था। मगर ये इंदिरा गांधी का आखिरी चुनाव था और इसी साल भारतीय जनता पार्टी भी अस्तित्व में आई।
08:45 AM Apr 03, 2024 IST | News24 हिंदी
इंद‍िरा गांधी का वो आख‍िरी चुनाव  ज‍िसमें सत्तारूढ़ पार्टी महज 31 सीटों पर स‍िमटी

दिनेश पाठक, वरिष्ठ पत्रकार

Lok Sabha Election: देश के लिए यह दूसरा मध्यावधि चुनाव था। पहला साल 1971 में हुआ था तो दूसरा साल 1980 में। इमरजेंसी से उपजे आक्रोश के बाद जनता पार्टी की नई नवेली सरकार महज 18 महीने में ही गिर चुकी थी। कांग्रेस ने चौधरी चरण सिंह को अपने समर्थन से पीएम बना दिया लेकिन वो संसद पहुंचते उसके पहले ही उनकी सरकार भी कांग्रेस ने ही गिरा दी। इसी के साथ देश में आम चुनाव घोषित हो गए। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में चौधरी चरण सिंह एक मात्र ऐसे प्रधानमंत्री बने जो संसद में पीएम के रूप में एक बार भी नहीं पहुंच सके। लोकसभा का यही कार्यकाल इंदिरा गांधी के लिए काल बना। वो फिर चुनाव मैदान में नहीं उतर सकीं। पंजाब के आतंकवाद की आग में झुलसकर उनका जीवन होम हो गया।

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केंद्र में सत्तारूढ जनता पार्टी को मिलीं सिर्फ 31 सीट

यह वही समय था जब पूरी की पूरी जनता पार्टी बिखर चुकी थी। इसके नेता एकता के नाम पर केवल खंड-खंड राजनीति कर रहे थे। सब एक-दूसरे के खिलाफ जुटे थे। नेताओं की महत्वाकांक्षा देश के आम मतदाताओं ने भी महसूस की। उन्होंने देखा कि जनता पार्टी को जिस उम्मीद से सत्ता सौंपी थी, वह कहीं ढेर हो गई तो उसी आम आदमी ने दूसरे मध्यावधि चुनाव में इंदिरा गांधी को 353 सीटों पर विजयी बना दिया। वो फिर से सत्ता में लौटीं। चौथी बार प्रधानमंत्री बनीं और यही उनका अंतिम चुनाव साबित हुआ।

पीएम रहते वो खालिस्तानी आंदोलन की शिकार हुईं। सातवीं लोकसभा के इस कार्यकाल ने देश को कई दंश दिए। इंदिरा गांधी की हत्या हुई। जनता पार्टी में शामिल होने से पहले तक जिस जनसंघ का प्रभाव देश में बनता हुआ दिखाई दे रहा था, वह अंतिम सांसें ले रही थी। साल 1977 में सरकार बनाने वाली जनता पार्टी साल 1980 में सिर्फ 31 सीटों पर सिमट गई। जनता पार्टी सेक्युलर को जरूर 41 सीटें मिलीं। इस चुनाव में कांग्रेस के अलावा कोई भी दल सौ का आंकड़ा नहीं पार कर सका था।

इंदिरा गांधी चौथी बार बनी पीएम, भाजपा का गठन भी इसी साल हुआ

जनता पार्टी की बुरी तरह हार के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री पद की शपथ ले चुकी थीं। कुछ ही महीनों बाद साल 1980 में ही भारतीय जनसंघ के अगली पंक्ति के नेता अटल बिहारी वाजपेई की लीडरशिप में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। यह श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में स्थापित भारतीय जनसंघ का ही दूसरा रूप था। इसकी मूल भावना भी वही थी, जो जनसंघ, दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी की थी। मुरली मनोहर जोशी, लाल कृष्ण आडवाणी जैसे मजबूत सिपाही अटल के सहयोगी के रूप में सामने थे। भाजपा की शुरुआत कमजोर जरूर रही लेकिन कुछ ही साल बाद अटल बिहारी वाजपेई देश के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने तीन बार शपथ ली। एक बार 13 दिन, दोबारा 13 महीने और तीसरी बार वाजपेई ने अपना कार्यकाल पूरा किया। हालांकि, तब और अब की भारतीय जनता पार्टी में जमीन और आसमान का अंतर है।

कांग्रेस के लिए चुनौती बना भिंडरावाला

साल 1977 के चुनाव में कांग्रेस पंजाब में भी बुरी तरह हार गई थी। इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी और कांग्रेसी नेता ज्ञानी जैल सिंह ने खलिस्तान का समर्थन करने वाले जनरैल सिंह भिंडरावाले का समर्थन लिया। साल 1980 के चुनाव में तो उसने बाकायदा कांग्रेस के लिए प्रचार किया। इसी बीच एक हत्या में उसका नाम सामने आने पर उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया लेकिन बहुत जल्दी वह जेल से रिहा हो गया। इसके बाद उसकी ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ। वह हीरो बनकर उभरा और कांग्रेस के लिए ही चुनौती बन गया। सिखों को अपने पाले में करने को कांग्रेस ने साल 1982 में ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठा दिया लेकिन इसका कोई लाभ उसे नहीं मिला। पंजाब जलता ही रहा।

इंदिरा गांधी की हुई हत्या

सातवीं लोकसभा के कार्यकाल में ही पंजाब में आतंकवाद फैला और ऑपरेशन ब्लू स्टार तक चलाना पड़ा। भिंडरवाला की पहुंच सिखों में काफी ज्यादा थी। इसी वजह से साल 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई और देश में सिख विरोधी जन सैलाब सड़कों पर उतरा। देश भर में अनेक लोग मारे गए। सिखों की दुकानें-शोरूम जला दिए गए। वह दाग कांग्रेस पर अभी भी किसी न किसी रूप में चस्पा है। हालांकि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व में हुए चुनाव में कांग्रेस की आंधी चली। उसने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। अब तक देश के लोकतान्त्रिक इतिहास में उस तरह की जीत का स्वाद किसी भी दल ने कभी भी नहीं चखा। इस बार जरूर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार सौ पार का नारा दिया है। हालांकि यह नारा उन्होंने एनडीए के लिए दिया है, केवल भाजपा के लिए 370 पार का नारा दिया है। इसके परिणाम चार जून को सामने आएंगे।

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