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चंपई सोरेन ने बगावत का कर दिया ऐलान, X के बायो से हटाया JMM का नाम, बताई दूरी की वजह

Jharkhand Politics : हेमंत सोरेन की सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। विधानसभा चुनाव से पहले जेएमएम में बगावत छिड़ गई। इस बीच पूर्व सीएम चंपई सोरेन ने एक्स के बायो से जेएमएम हटा दिया, जिसे लेकर सियासत तेज हो गई।
06:34 PM Aug 18, 2024 IST | Deepak Pandey
चंपई सोरेन ने बगावत का कर दिया ऐलान  x के बायो से हटाया jmm का नाम  बताई दूरी की वजह
जेएमएम से क्यों नाराज हैं चंपई सोरेन।

Jharkhand Politics : झारखंड की राजनीति में बगावत शुरू हो गई। पूर्व सीएम और जेएमएम के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन ने खुद बगावत का ऐलान कर दिया। उन्होंने अपने एक्स के बायो से झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का नाम हटा दिया, लेकिन झारखंड का पूर्व मुख्यमंत्री लिखा हुआ है। चंपई सोरेन ने पार्टी से दूर होने की भी वजह बताई है। इसे लेकर झारखंड से लेकर दिल्ली तक हलचल तेज हो गई है।

झारखंड के पूर्व सीएम चंपई सोरेन के दिल्ली रवाना होते ही तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। इस बीच यह भी खबर आ रही है कि विधानसभा चुनाव से पहले वे भाजपा में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, उन्होंने अपने दिल्ली दौरे को लेकर कहा कि वे अपने निजी काम से राजधानी आए हैं। यहां उनकी किसी भी भाजपा नेता से मुलाकात नहीं हुई।

यह भी पढ़ें : 6 विधायक लेकर दिल्ली क्यों पहुंचे? बगावत के सवाल पर चंपई सोरेन ने दिया ये जवाब

चंपई सोरेन ने एक्स पर किया भावुक पोस्ट

चंपई सोरेन ने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि जोहार साथियों, आज समाचार देखने के बाद आप सभी के मन में कई सवाल उमड़ रहे होंगे। आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने कोल्हान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है। राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं। किसी भी पद पर रहा अथवा नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा, उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ, अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे।

पूरी निष्ठा से कर्तव्यों का किया निर्वहन : पूर्व सीएम

उन्होंने आगे कहा कि 31 जनवरी को एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के बाद इंडिया गठबंधन ने मुझे झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना। अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन 3 जुलाई तक मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। इस दौरान हमने जनहित में कई फैसले लिए और हमेशा की तरह, हर किसी के लिए सदैव उपलब्ध रहा। बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों एवं समाज के हर तबके तथा राज्य के हर व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए हमने जो निर्णय लिए, उसका मूल्यांकन राज्य की जनता करेगी।

न किसी के साथ गलत किया, न ही होने दिया

पूर्व सीएम ने कहा कि जब सत्ता मिली, तब बाबा तिलका मांझी, भगवान बिरसा मुंडा और सिदो-कान्हू जैसे वीरों को नमन कर राज्य की सेवा करने का संकल्प लिया था। झारखंड का बच्चा-बच्चा जानता है कि अपने कार्यकाल के दौरान मैंने कभी भी किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया। इसी बीच हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है। इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था। पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते।

अचानक से उनका कार्यक्रम कर दिया गया रद्द

चंपई सोरेन ने कहा कि क्या लोकतंत्र में इससे अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा। लेकिन, उधर से साफ इंकार कर दिया गया। पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। दो दिन तक, चुपचाप बैठ कर आत्म-मंथन करता रहा, पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा। सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता?

विधायक दल की बैठक बुलाई का एजेंडा तक नहीं बताया

उन्होंने आगे कहा कि जब वर्षों से पार्टी के केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं हो रही है, और एकतरफा आदेश पारित किए जाते हैं, तो फिर किस से पास जाकर अपनी तकलीफ बताता? इस पार्टी में मेरी गिनती वरिष्ठ सदस्यों में होती है, बाकी लोग जूनियर हैं, और मुझसे सीनियर सुप्रीमो जो हैं, वे अब स्वास्थ्य की वजह से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, फिर मेरे पास क्या विकल्प था? अगर वे सक्रिय होते, तो शायद अलग हालात होते। कहने को तो विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार मुख्यमंत्री का होता है, लेकिन मुझे बैठक का एजेंडा तक नहीं बताया गया था। बैठक के दौरान मुझसे इस्तीफा मांगा गया। मैं आश्चर्यचकित था, लेकिन मुझे सत्ता का मोह नहीं था, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी चोट से दिल भावुक था।

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मेरे पास हैं अब ये तीन विकल्प

उन्होंने आगे लिखा कि पिछले तीन दिनों से हो रहे अपमानजनक व्यवहार से भावुक होकर मैं आंसुओं को संभालने में लगा था, लेकिन उन्हें सिर्फ कुर्सी से मतलब था। मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए हम ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इस बीच कई ऐसी अपमानजनक घटनाएं हुईं, जिसका जिक्र फिलहाल नहीं करना चाहता। इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने के लिए मजबूर हो गया। मैंने भारी मन से विधायक दल की उसी बैठक में कहा कि आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे। पहला- राजनीति से संन्यास लेना, दूसरा- अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा- इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना। उस दिन से लेकर आज तक, तथा आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक, इस सफर में मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं।

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