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शेल्टर होम का सनसनीखेज मामला, जिसने हटाया Bhakshak के चेहरे का नकाब

Bhakshak, Muzaffarpur Shelter (Munnawarpur) home Sexual Assault Case: एक ऐसी कहानी जो दिखाती हैं कि इंसान, इंसान है या फिर 'भक्षक'
02:24 PM Feb 10, 2024 IST | Nancy Tomar

Bhakshak, Muzaffarpur Shelter (Munnawarpur) home Sexual Assault Case: जब हम अपने समाज की बात करते हैं, तो उसकी रूढ़िवादी सोच सामने आती ही है। बीते दिन यानी 9 फरवरी 2024 को नेटफ्लिक्स पर 'भक्षक' नाम की फिल्म रिलीज हुई। इस फिल्म में भूमि पेडनेकर लीड रोल में है। सच्ची घटना पर आधारित ये फिल्म बिहार के कथित बहुचर्चित मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौन शोषण की घटना पर आधारित है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे अपनी हवस के लिए एक इंसान, इंसान नहीं रहता बल्कि बन जाता है 'भक्षक'

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मासूमों के साथ जानवरों से भी भद्दा सलूक

बिहार की एक आम-सी पत्रकार से शुरु होती है, इस फिल्म की कहानी। फिल्म में वैशाली नाम की पत्रकार है, जो अपना खुद का एक चैनल चलाती है, लेकिन उनके चैनल की कोई खास पहचान नहीं हैं। इस फिल्म की कहानी में मोड़ तब आता है, जब वैशाली मुन्नवरपुर के शेल्टर होम पर काम करना शुरु कर देती है। मुन्नवरपुर का वहीं शेल्टर होम जहां मासूम बच्चियों के साथ ना सिर्फ बलात्कार किया जाता है बल्कि उनके साथ जानवरों से भी भद्दा सलूक होता है।

 

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किसी ने नहीं ली कोई खबर

ये एक ऐसा बालिका गृह है, जिसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता। ना यहां सि कभी किसी बच्ची को दूसरी जगह भेजा गया और ना ही किसी ने यहां कि खबर ली। खबर ली भी कैसे जाए, अगर वहां कुछ होता भी था, तो छोटी उम्र की बच्चियों को मार दिया जाता था। इस शेल्टर होम में सब कुछ ऐसा था, जो किसी का भी सीना चीर दे। ऊपर से लेकर नीचे तक हर कोई अपने फायदे की बात करता।

 

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वैशाली बनीं मासूमों का मसीहा

पर कब तक इंसानियत ऐसे ही मरती रहेगी। किसी ना किसी को तो आगे आकर इस पर सवाल उठाने ही होंगे, जो इस फिल्म में भूमि पेडनेकर बनी वैशाली उठाती है। वैशाली ठान लेती हैं कि उन्हें इन मासूम बच्चियों को इंसाफ दिलाना है और वो इस पर साहस और निडरता से काम करना शुरू कर देती हैं। धीरे-धीरे मामले पर काम होने लगता है और फिर सामने आता है मुन्नवरपुर के शेल्टर होम का काला सच, जिसने एक-दो नहीं ना जाने कितनी मासूम बच्चियों को अपना शिकार बनाया।

इंसान या फिर 'भक्षक'

जब भी कोई इस तरह का मामला सामने आता है, तो सवाल सिर्फ देश या राज्य की कानून व्यवस्था का नहीं बल्कि उन पर भी उठता है, जो इस देश के ठेकेदार हैं। आखिर कहां चली जाती हैं इंसानियत? कहां चली जाती है इंसान की सोचने की शक्ति? क्या कभी भी कोई किसी के दर्द को नहीं समझ पाएगा? क्या इस देश में ऐसे ही मासूमों पर अत्याचार होता रहेगा? इस तरह के एक नहीं बल्कि तमाम सवाल ऐसे हैं, जो इंसान को सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि वो सच में इंसान है या फिर 'भक्षक'

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