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राजपरिवार की सीट पर कांग्रेस की उर्मिला दे रही दुष्यंत को कड़ी चुनौती, साख बचाने 'महारानी' मैदान में सक्रिय

Rajasthan Lok Sabha Election: राजसथान की झालावाड़-बारां सीट प्रदेश की हाॅट सीटों में से एक हैं। इस सीट पर अब तक 17 चुनाव हुए है इसमें से केवल 3 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। हालांकि इस बार कांग्रेस ने यहां मजबूत प्रत्याशी उतारा है। ऐसे में यहा मुकाबला रोचक होने जा रहा है।
11:29 AM Apr 25, 2024 IST | Rakesh Choudhary
राजपरिवार की सीट पर कांग्रेस की उर्मिला दे रही दुष्यंत को कड़ी चुनौती  साख बचाने  महारानी  मैदान में सक्रिय
झालावाड़ में दुष्यंत सिंह के सामने उर्मिला जैन की चुनौती

Rajasthan Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के दूसरे चरण में राजस्थान की 13 सीटों पर 26 अप्रैल को वोटिंग होनी है। इसमें झालावाड़-बारां सीट सबसे लोकप्रिय सीट है। इस सीट से पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह 5वीं बार चुनाव मैदान में हैं। वहीं कांग्रेस से गहलोत सरकार में पूर्व मंत्री रह चुके प्रमोद जैन भाया की पत्नी उर्मिला जैन उम्मीदवार हैं। ऐसे में दोनों के बीच रोचक मुकाबला होने जा रहा है। दुष्यंत की मां वसुंधरा राजे स्वयं इस सीट से 5 बार सांसद रहने के साथ ही अटल सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह चुकी हैं। दुष्यंत सिंह पिछले 20 साल से इस सीट से सांसद हैं।

पूर्व सीएम वसुंधरा राजे 1989 में पहली बार यहां से सांसद बनीं। इसके बाद 2004 में उनके बेटे दुष्यंत सिंह यहां से सांसद बने। कुल मिलाकर पिछले 35 साल से इस सीट पर पूर्व राजपरिवार का शासन है। भाजपा में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे फिलहाल झालावाड़ की झालरापाटन सीट से विधायक हैं। पार्टी में वे एक तरह से हाशिए पर जा चुकी है। केंद्र की राजनीति में उनकी दिलचस्पी नहीं है। ऐसे में वह इस बार चुनाव नहीं लड़ रही हैं ना ही अन्य सीटों पर प्रचार करने जा रही हैं।

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घर-घर दस्तक दे रही वसुंधरा

वसुंधरा राजे इन दिनों झालावाड़-बारां काफी सक्रिय है। इसकी वजह है प्रमोद जैन भाया की पत्नी उर्मिला जैन। उर्मिला 2009 का लोकसभा चुनाव दुष्यंत के सामने लड़ चुकी हैं। इस चुनाव में उन्होंने दुष्यंत को कड़ी टक्कर दी। दुष्यंत मात्र 52 हजार वोटों से इस सीट को जीत पाए थे। हालांकि सहानुभूति लहर के चलते इस बार भी दुष्यंत बड़े अंतर से यह चुनाव जीत सकते हैं।

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क्या कहता है इस सीट का इतिहास

इस सीट पर पहले दो चुनाव यानी 1952 और 1957 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की। यहां से कांग्रेस नेमीचंद कासलीवाल सांसद रहे। इसके बाद से इस सीट पर जनसंघ और भाजपा का ही कब्जा रहा है। हालांकि 1984 में इंदिरा गांधी की सहानुभूति लहर में कांग्रेस के जुझार सिंह ने यहां जरूर जीत दर्ज की। इस सीट पर अब तक 17 चुनाव हो चुके हैं इसमें से 14 पर बीजेपी चुनाव जीती है। जबकि 3 बार कांग्रेस पार्टी का कब्जा रहा। वहीं अब तक इस सीट से 10 बार राज परिवारों का कब्जा रहा है।

कांग्रेस ने इस सीट पर कई बार स्थानीय के अलावा बाहरी प्रत्याशियों को भी मैदान में उतारा लेकिन हर बार कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। जैसे 1999 में कांग्रेस ने अबरार अहमद को उतारा। 2004 में संजय गुर्जर को प्रत्याशी बनाया लेकिन पार्टी को सफलता नहीं मिल सकी। इस सीट से कोटा के पूर्व महाराव बृजराज सिंह भी चार बार सांसद रह चुके हैं। उनके बेटे इज्यराज सिंह भी कोटा से 2009 में सांसद रह चुके हैं। हालांकि बृजराज सिंह भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे।

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