Govardhan Puja Katha: जब इंद्र हुए क्रोधित, डर गए बृजवासी, फिर भगवान श्रीकृष्ण ने किया यह काम, जानें गोवर्धन पूजा कथा!
Govardhan Puja Katha: हिंदू धर्म के अधिकांश पर्व-त्योहार में प्रकृति के साथ मनुष्य का सीधा संबंध दिखाई देता है। ऐसे त्योहारों में गोवर्धन पूजा भी एक है, जो दिवाली के दूसरे दिन यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार हमें भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्मरण कराता है। इस साल गोवर्धन पूजा शनिवार 2 नवंबर, 2024 को यानी आज है। आइए इस मौके पर जानते हैं, गोवर्धन पूजा की कथा क्या है?
जब इंद्र भगवान हुए क्रोधित
द्वापर युग की बात है। भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अपना आठवां अवतार ले लिया था। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्र ग्वालों के साथ गाय चराते हुए गोवर्धन पर्वत जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि बहुत से गोपियां एक उत्सव मना रही थी। वे उत्तम पकवान बना रहे थे। श्रीकृष्ण ने इसका कारण जानना चाहा तो वहां गोपियों ने कहा, “हमलोग मेघ के राजा और देवताओं के स्वामी इंद्रदेव की पूजा कर रहे हैं। इससे इंद्रदेव प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे, जिससे हमारे खेतों में अन्न उत्पन्न होगा और ब्रजवासियों का भरण-पोषण होगा।”
यह सुन श्रीकृष्ण मंद-मंद मुस्काए और उन सबसे बोले। “इंद्र से अधिक शक्तिशाली तो गोवर्धन पर्वत है जिनके कारण यहाँ वर्षा होती है और सबको इंद्र से भी बलशाली गोवर्धन का पूजन करना चाहिए। हमारी गायें यहीं चरती हैं। इंद्र का दर्शन भी नहीं होता है और वे तो पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं।”
भगवान कृष्ण की इस सलाह पर सभी बृजवासियों ने इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की। जब इंद्र ने यह देखा तो उन्होंने इसे अपना अपमान समझा। उन्होंने क्रोधित होकर मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल, वृंदावन और गोवर्धन क्षेत्र मूसलाधार बारिश करें। फिर क्या था, आसमान से मेघ फट पड़ा, मूसलाधार वर्षा शुरू हो गई।
घोर संकट में आ गए बृजवासी
बारिश ने सभी बृजवासियों को भयभीत कर दिया। भयावह बारिश से डरे और सहमे हुई गोपियां-ग्वाले और दूसरे बृजवासी भगवान श्रीकृष्ण के पास गए। उनमें से कुछ लोगों ने इस आपदा के लिए भगवान कृष्ण को दोषी ठहराना शुरू कर दिया। फिर गोपियों ने उनसे इस आपदा से बचाने के लिए उन्हें ही कुछ करने के लिए कहने लगीं।
फिर भगवान श्रीकृष्ण ने किया यह काम
समस्या के समाधान लिए भगवान कृष्ण ने गोकुल, वृंदावन समेत सभी बृजवासियों को गोवर्धन पर्वत के पास इकट्ठा होने के लिए कहा। उन्होंने अपनी सबसे छोटी उंगली यानी कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और छाते की तरह तान दिया। सभी ब्रजवासियों को अपने गाय और बछड़ों के साथ गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए बुलाया। इस पर इंद्र का क्रोध और बढ़ गया और उन्होंने बारिश की तीव्रता को और भी बढ़ा दिया।
भगवान इंद्र के मेघ सात दिन तक निरंतर बरसते रहे। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए लीलाधर भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को आदेश दिया कि वह पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें। दूसरी ओर उन्होंने शेषनाग से भी कहा कि वह मेड़ बनाकर बारिश के जल प्रवाह को पर्वत की ओर आने से रोकें। इस प्रकार भगवान कृष्ण ने समस्त बृजवासियों की रक्षा की।
टूट गया इंद्र का घमंड
जब इंद्र ने यह देखा, तो उन्हें महसूस हुआ कृष्ण कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। वे भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई। ब्रह्मा जी ने इंद्र को समझाया कि भगवान कृष्ण स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हें पहचानने में उनकी गलती हुई। इस पर इंद्र का घमंड टूट गया और उन्होंने भगवान कृष्ण से क्षमा याचना की और उनकी पूजा करने का निर्णय लिया।
इस तरह शुरू हुई गोवर्धन पूजा की परंपरा
इस पौराणिक घटना के बाद से गोवर्धन पूजा का आयोजन किया जाने लगा। ब्रजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं और गाय-बैल को स्नान कराकर उन्हें रंग-बिरंगे कपड़े पहनाते हैं। उन्हें गुड़ और चावल देकर विशेष रूप से सम्मानित करते हैं। इसके बाद से ब्रज समेत पूरे संसार में इस दिन गोवर्धन पूजा होने लगी और भगवान श्रीकृष्ण को अन्नकूट भोग लगाया जाने लगा। अन्नकूट भोग में रोटी, चावल, पूरी, सब्जी सहित 56 प्रकार के भोजनों का पहाड़ बनाया जाता है, जिसे अन्नकूट कहते हैं।
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