Mahabharata Story: महाभारत युद्ध में कई बार हारे थे कर्ण, अर्जुन के इस शिष्य ने दी थी मात!
Mahabharata Story: महाभारत में एक से एक ताकतवर शूरवीर, योद्धा और महारथी थे। कई योद्धा तो ऐसे थे जो महाभारत युद्ध पल भर में समाप्त तक कर सकते थे। स्वयं भीष्म पितामह ने भी इस बात का दावा किया था। लेकिन तब वह युद्ध नहीं होता, मंत्र शक्ति का कमाल होता, जो कि युद्ध के नियमों के विपरीत एक छल माना जाता। यहां एक ऐसे परमवीर की चर्चा की गई है, जिसे अर्जुन ने रणविद्या और धनुर्विद्या सिखाई थी और उसने कर्ण को कई बार हराया था। आइए जानते हैं, कौन थे ये महायोद्धा?
कौन थे सात्यकि?
महाभारत के अनुसार, कर्ण को कई बार हराने वाले इस योद्धा का नाम था, सात्यकि। वे भगवान कृष्ण और अर्जुन के अभिन्न मित्र थे। यादव राजकुमार सात्यकि यादव सेना के सेनापति थे। उनके पिता सत्यक श्रीकृष्ण की नारायणी सेना के एक अधिकारी थे। महाभारत के समय श्रीकृष्ण की नारायणी ने कौरवों की तरफ से युद्ध किया, लेकिन गुरु अर्जुन के विरुद्ध युद्ध न करने की प्रार्थना को श्रीकृष्ण ने स्वीकार कर सात्यकि को पांडवों की ओर से युद्ध की अनुमति दी थी।
इन योद्धाओं को पहुंचाया परलोक
अर्जुन सात्यकि पर अपने से भी अधिक भरोसा करते थे। अभिमन्यु के वध के बाद अगले दिन जब अर्जुन ने जयद्रथ वध की प्रतिज्ञा ली थी, तो उन्होंने युधिष्ठिर की रक्षा का दायित्व सात्यकि को ही दिया था। सात्यकि एक बहुत पराक्रमी योद्धा थे। उन्होंने अपने रणकौशल से द्रोणाचार्य, कृतवर्मा, यवन सेना, कंबोजों की सेना, कौरव सेना और दुशासन जैसे कई योद्धाओं को परास्त किया था। महावीर सात्यकि ने दुर्योधन के कई महावीरों को मार डाला था। इनमें जलसंधि, त्रिगतकी, सुदर्शन, पाषाणयुधी और कर्णपुत्र प्रसन्न आदि प्रमुख थे।
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कर्ण को दी 6 बार मात
महाभारत युद्ध के दौरान कर्ण का सामना कई बार सात्यकि से भी हुआ था। कहते हैं कि वे दोनों 6 बार एक-दूसरे के आमने-सामने आए थे। दोनों में भीषण युद्ध हुआ था, इतना भीषण कि उनके रथ के पहिए की तेज गति से कुरुक्षेत्र का विशाल मैदान धूल के बादल से ढक गया था। सात्यकि ने हर बार कर्ण को मात दी थी। महाभारत के युद्ध में भले ही सात्यकि ने कर्ण को कई बार हराया था, लेकिन उन्हें मारने की प्रतिज्ञा अर्जुन ने ले रखी थी। इसलिए उन्होंने कर्ण के प्राण नहीं लिए थे।
बता दें, सात्यकि उन चंद लोगों में से थे जो महाभारत युद्ध के बाद जीवित बचे। वे श्रीकृष्ण के सारथी भी थे। महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले जब कृष्ण कौरवों को समझाने के लिए शांति संदेश ले कर हस्तिनापुर आए, तो उस समय उनके साथ केवल सात्यकि ही आए थे।
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