बारूद के डर से जिस टीम ने छोड़ा देश, भारत ने दी पनाह, आज वही आखिर क्यों दिखा रही 'आंख'?
AFG vs NZ: साल 2016 में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने अफगानिस्तान क्रिकेट टीम को ग्रेटर नोएडा स्टेडियम दिया था। उस समय अफगानिस्तान के खिलाड़ी अपनी पहचान इंटरनेशल स्तर पर बनाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये थी कि अफगानिस्तान के पास क्रिकेट खेलने के लिए एक मैदान भी ढंग का नहीं था। तब बीसीसीआई ने अफगान क्रिकेट टीम को खुलकर सपोर्ट किया और भारत में स्थित ग्रेटर नोएडा स्टेडियम दिया। ताकि अफगान के खिलाड़ी यहां अभ्यास कर सके और दूसरे देश के खिलाफ मैच खेल सके। बीसीसीआई अकसर अफगान क्रिकेट टीम की मदद करते आई है।
ये मामला इस समय, इसलिए चर्चा का विषय बन चुका है क्योंकि अफगानिस्तान क्रिकेट टीम ग्रेटर नोएडा के इस मैदान पर न्यूजीलैंड के खिलाफ 9 सितंबर से टेस्ट मैच खेलने वाली थी। लेकिन बारिश और स्टेडियम की खराब व्यवस्था के कारण मुकाबला तीसरे दिन भी शुरू नहीं हो सका। हालांकि इस दौरान अफगान के कुछ खिलाड़ियों ने बीसीसीआई पर निशाना साधते हुए ये तक कह दिया कि हम अब कभी इस मैदान पर नहीं खेलेंगे। आखिर अफगानी खिलाड़ियों को आंख दिखाने की हिम्मत कहां से आई, जबकि बीसीसीआई ने अफगान टीम का साथ उस वक्त दिया था, जब अफगानिस्तान में आए दिन बारूद के धमाके कि खबरें सुनने को मिलती थी। आखिर इसके पीछे की वजह क्या है?
भारत ने अफगानिस्तान क्रिकेट को निखारने में की मदद
इस बात से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता है कि अफगानिस्तान क्रिकेट की ऊचांइयों के पीछे आज भारत का ही हाथ है। इस देश के खिलाड़ी आज दुनिया भर में अपना नाम कमा रहे हैं। साथ ही देश विदेश की बड़ी फ्रेंचाइजियों में आज अफगानिस्तान के खिलाड़ियों का दबदबा है। राशिद खान, मोहम्मद नबी, नूर अहमद, हश्मतुल्लाह शहीदी, नवीन उल हक जैसे खिलाड़ी आज दुनिया में अपनी पहचान रखते हैं। ये सब मुमकिन नहीं होता अगर भारत ने अफगानिस्तान क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए ग्रेटर नोएडा में स्टेडियम मुहैया नहीं करता।
विवादित बयान से बवाल
ग्रेटर नोएडा स्टेडियम में बारिश के कारण आउटफील्ड को सुखाने का भरपूर प्रयास किया गया। लेकिन मैदान नहीं सूखा, जिसके बाद अफगानिस्तान के एक अधिकारी ने बयान जारी करते हुए कहा 'आप मेरी बात पर यकीन नहीं करेंगे लेकिन अफगानिस्तान के स्टेडियमों में इस स्टेडियम से बेहतर सुविधाएं हैं। हमने पिछले कुछ सालों में अपने बुनियादी ढांचे में सुधार किया है। हमारी पहली पसंद लखनऊ स्टेडियम था और दूसरी देहरादून। हमारे अनुरोधों को बीसीसीआई ने अस्वीकार कर दिया और हमें बताया गया कि दोनों राज्य अपनी-अपनी टी20 लीग की मेज़बानी कर रहे हैं। यह एकमात्र उपलब्ध मैदान था और हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था'।
क्यों बयान देने की पड़ी जरूरत?
एक वक्त था जब अफगानिस्तान के खिलाड़ियों को दुनिया में कोई नहीं जानता था। लेकिन अब अफगान के खिलाड़ी दुनिया भर में किसी परिचय के मोहताज नहीं है। ये खिलाड़ी देश विदेश में फ्रेंचाइजी क्रिकेट खेलकर करोड़ों रुपये कमा रहे हैं। कई खिलाड़ियों की नेटवर्थ करोड़ों रुपये हो गई है। शायद यही वजह है कि अब पैसा कमाने के बाद अफगानी खिलाड़ी बीसीसीआई पर अपना रौब झाड़ रहे हैं और आंख दिखा रहे हैं। लेकिन एक जमाना था जब बीसीसीआई ने ही अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड की मदद की थी और यही वजह है कि अफगान की क्रिकेट में आज सुधार आया है। आज अफगान टीम, पाकिस्तान और इंग्लैंड जैसी विश्व चैंपियन टीमों को हराने में सक्षम है, जिसका क्रेडिट बीसीसीआई को ही जाता है।
एसीबी ने बयान से लिया यू-टर्न
अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड के क्रिकेट मैनेजर मेंहजुद्दीन नाज ने एसीबी के एक अधिकारी द्वारा दिए गए बयान से पलट गए। उन्होंने बाद में माना कि हमे बीसीसीआई की ओर से कानपुर स्थित ग्रीन पार्क स्टेडियम और एम चिन्नास्वामी स्टेडियम के अलावा ग्रेटर नोएडा स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स स्टेडियम में किसी एक मैदान को चुनने के लिए कहा गया था। लेकिन हमने दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा का मैदान इसलिए चुना क्योंकि काबुल से दिल्ली की कनेक्टिविटी बेहतर है। दोनों शहरों के बीच सीधी फ्लाइट भी है। इसलिए हमने ग्रेटर नोएडा को चुना।