Day-Night Test मैच में पिंक बॉल का इस्तेमाल क्यों? जानें इसके पीछे की दिलचस्प वजह
Day-Night Test Match: आपने क्रिकेट के मैदान पर लाल गेंद तो खूब देखी होगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि Day-Night Test मैचों में पिंक रंग की गेंद का इस्तेमाल क्यों किया जाता है? दरअसल, इस पिंक बॉल के पीछे एक बहुत ही दिलचस्प विज्ञान छिपा हुआ है। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों पिंक बॉल को Day-Night Test मैचों के लिए सबसे बेहतर मानी जाती है और इसके क्या फायदे हैं।
क्रिकेट में साइंस का इस्तेमाल
दुनिया भर के खेलों में साइंस का इस्तेमाल होता है। क्रिकेट में भी खिलाड़ी जो ड्रेस पहनते हैं, वह वैज्ञानिक कारणों पर आधारित होती है। जैसे, वनडे क्रिकेट में खिलाड़ी रंगीन कपड़े पहनते हैं और सफेद गेंद से खेलते हैं ताकि गेंद साफ नजर आए। इसी तरह, टेस्ट मैच में खिलाड़ी सफेद कपड़े पहनते हैं और लाल गेंद का इस्तेमाल करते हैं। सफेद कपड़े पहनने का फायदा यह है कि ये सूरज की रोशनी में ज्यादा गर्मी नहीं सोखते और गेंद साफ दिखाई देती है।
टेस्ट क्रिकेट में कितनी गेंदों का इस्तेमाल होता है
टेस्ट क्रिकेट में तीन तरह की गेंदों का इस्तेमाल होता है: कूकाबुरा, एसजी और ड्यूक। हर फॉर्मेट में अलग-अलग रंग की गेंदें इस्तेमाल होती हैं। पहले टेस्ट मैचों में केवल लाल गेंद का इस्तेमाल होता था, लेकिन अब गुलाबी गेंद का भी इस्तेमाल होने लगा है। भारत ने पहली बार गुलाबी गेंद से 22 नवंबर 2019 को बांग्लादेश के खिलाफ Day-Night Test मैच खेला और जीत दर्ज की थी।
लाल और गुलाबी गेंद में अंतर
लाल और गुलाबी गेंद में सबसे बड़ा अंतर उनकी प्रोसेस में है। लाल गेंद का चमड़ा रंगा जाता है और इसे चमकाने के लिए खास प्रोसेस की जाती है। वहीं, गुलाबी गेंद पर चमड़े के ऊपर रंगद्रव्य (डाई) की एक कोटिंग लगाई जाती है, जो इसे अलग बनाती है। लाल गेंद का रंग चमड़े में समा जाता है, जबकि गुलाबी गेंद पर रंग कोटिंग के रूप में होता है, जैसे कार पर रंग चढ़ाया जाता है। नई गुलाबी गेंद लाल गेंद से ज्यादा स्विंग करती है क्योंकि इसमें रंग की एक अतिरिक्त कोटिंग होती है।
गुलाबी, नारंगी या पीली गेंद क्यों नहीं?
गुलाबी गेंद सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया की कूकाबुरा कंपनी ने बनाई थी। शुरुआत में इस गेंद का रंग जल्दी उतर जाता था, लेकिन सुधार के बाद इसे स्थायी बना दिया गया। कंपनी ने रंग बदलने के प्रयोग किए और अंत में गुलाबी गेंद को सबसे ठीक पाया। इस पर काले धागे की सिलाई की गई थी। बाद में, हरे और सफेद धागों का भी उपयोग किया गया। भारतीय टीम ने जिस गुलाबी गेंद से खेला, उसमें काले धागे की सिलाई थी।