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21 साल से खुद को जिंदा साबित करने में जुटे संतोष, पंकज त्रिपाठी की फिल्म जैसी सच्चाई

UP News: यूपी के वाराणसी से हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां एक शख्स खुद को 21 साल से जिंदा साबित करने की कोशिश में जुटे हैं। न्याय के लिए वे विधायक से लेकर सरकार तक का दरवाजा खटखटा चुके हैं।
01:49 PM Jan 08, 2025 IST | Rakesh Choudhary
21 साल से खुद को जिंदा साबित करने में जुटे संतोष  पंकज त्रिपाठी की फिल्म जैसी सच्चाई
Santosh Kumar Singh Alive

Santosh Kumar Singh Alive Controversy: यूपी के वाराणसी से हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां एक शख्स संतोष कुमार सिंह को 21 साल पहले मुंबई में हुए ब्लास्ट में मरा हुआ घोषित कर दिया गया है। लेकिन आपको बता दे यह व्यक्ति एकदम सही है और स्वयं को जिंदा साबित करने के लिए संघर्ष कर रहा है। परिवार के लोगों ने उसकी जमीन हड़प ली है। आज संतोष कुमार सिंह खुद को जिंदा साबित करने के लिए गले में मैं जिंदा हूं का पोस्टर डालकर घूम रहे हैं। संतोष सिंह की कहानी बाॅलीवुड फिल्म कागज के जैसी ही है। कागज फिल्म में जिस प्रकार पंकज त्रिपाठी स्वयं को जिंदा साबित करने में जुटे होते हैं, ठीक उसी प्रकार संतोष सिंह पिछले 21 सालों से खुद को जिंदा साबित करने में जुटे हैं।

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संतोष कुमार सिंह का दावा है कि वे करीब तीन साल तक मुंबई में बाॅलीवुड एक्टर नाना पाटेकर के रसोइया रहे है। रिकाॅर्ड में मर चुके संतोष कुमार सिंह का कहना है कि खुद को जिंदा साबित करने के लिए वे विधायक से लेकर नगरपालिका चुनाव तक में नामांकन दाखिल करने का प्रयास कर चुका है, लेकिन उसे कभी स्वीकार नहीं किया गया। अब तक उसे 100 बार हिरासत में लिया गया है, लेकिन पुलिस हर बार उसे बिना कुछ किए ही छोड़ देती है।

बता दें कि संतोष इन दिनों इसलिए चर्चा में हैं, क्योंकि वे गुना में पास्ट लाइफ रिग्रेशन थैरेपी के जरिए अपने पुनर्जन्म की जानकारी लेने आए हैं। मेडिटेशन के जरिए उन्होंने अपने पिछले जीवन के बारे में जानने की कोशिश की। इसमें सामने आया कि पिछली जिदंगी में भी उनके चाचा ने उनकी जमीन हड़प ली थी, इस बार भी ऐसा ही हुआ है।

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ऐसे पहुंचे मुंबई

वाराणसी के चौबेपुर के छितौनी गांव के रहने वाले संतोष सिंह मैं जिंदा हूं टाइटल से जाने जाते हैं। वे पिछले 21 सालों से न्याय की मांग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे विधायक से सरकार तक का दरवाजा खटखटा चुके हैं, लेकिन अभी तक उन्हें न्याय नहीं मिला। खुद को जिंदा साबित करने के लिए उन्होंने नामांकन दाखिल किया था, लेकिन यह भी खारिज हो गया।

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संतोष सिंह ने बताया कि पिता सेना में थे, 1998 में उनकी मौत हो गई, जबकि उससे पहले 1995 में मां का निधन हो गया। उन्होंने बताया कि नाना पाटेकर 2000 में आंच फिल्म की शूटिंग करने के लिए आए थे, उसी समय मैं भी नाना पाटेकर के साथ मुंबई चला गया। तीन साल तक वहां रहा। इस दौरान परिजनों ने यह साबित कर दिया कि मैं लापता हो गया है और मेरी ब्लास्ट में हो गई है। तब से लेकर आज तक मैं खुद को जिंदा बता रहा हूं।

तेरहवीं पर ग्रामीणों ने किया फोन

तीन साल तक मुंबई में रहने के दौरान उनके गांव के रहने वाले दुर्गा सिंह, नारायण सिंह, अजय सिंह समेत कई लोगों ने खबर फैला दी कि मेरी मुंबई में एक ब्लास्ट हादसे में मौत हो चुकी है। एक दिन ग्रामीणों ने नाना पाटेकर को फोन किया और पूछा कि उससे बात करा दीजिए, जब मैंने उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि संतोष तुम कहां हो? आज तुम्हारी तेरहवीं है। इस पर मै हैरान रह गया। मेरे घर पहुंचने से पहले 2003 में परिवार वालों ने वाराणसी सदर तहसील में राजस्व विभाग में हलफनामा लगा दिया कि मेरी एक मुंबई में विस्फोट हादसे में मौत हो चुकी है।

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