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20 साल के डॉ. कर्ण सिंह के इशारे पर कैसे चलती थी जम्मू-कश्मीर की सियासत? देखें Exclusive इंटरव्यू

Karan Singh Exclusive Interview : जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह और महारानी तारा देवी के उत्तराधिकारी युवराज डॉ. कर्ण सिंह ने देश को आजाद होता हुए देखा है। उन्होंने न्यूज 24 से एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में विधानसभा चुनाव से लेकर कई मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए।
09:03 PM Aug 04, 2024 IST | Deepak Pandey

Karan Singh Exclusive Interview : राजनेता, लेखक और कूटनीतिज्ञ के तौर पर पहचान रखने वाले कर्ण सिंह भारतीय राजनीति में जाना-पहचाना नाम हैं। जम्मू और कश्मीर के महाराजा हरि सिंह और महारानी तारा देवी के उत्तराधिकारी युवराज कर्ण सिंह के एक इशारे पर कभी जम्मू-कश्मीर की सियासत चलती थी। डॉ. कर्ण सिंह ने 18 साल की ही उम्र में राजनीति में एंट्री ले ली थी। वह राजप्रतिनिधि, निर्वाचित सदर-ए-रियासत और राज्यपाल के पदों पर रहे। 'आमने-सामने' में उन्होंने न्यूज 24 की एडिटर इन चीफ अनुराधा प्रसाद से खास बातचीत की।

सवाल : आपने जम्मू कश्मीर को देखा, आर्टिकल 370 और 35 A खत्म हुआ। अगर ये पहले हो गया तो क्या आज बहुत चीजें खत्म हो जातीं?

जवाब : हमारे पूर्वजों ने साल 1846 में जम्मू-कश्मीर रियासत बनाई थी। जम्मू प्रांत, कश्मीर प्रांत, लद्दाख प्रांत, गिलगित बाल्टिस्तान प्रांत को मिलाकर जम्मू एंड कश्मीर रियासत बनाई थी। पिताजी के राज में दिल्ली में अंग्रेजों का राज था। हमारी सबसे बड़ी रियासत थी। पिता जी ने भारत के साथ संधि पत्र साइन किया था। उस वक्त 1947 से लेकर 1948 तक युद्ध चलता रहा। पहली जनवरी 1949 को यूएस के माध्यम से सीज फायर हुआ। उस वक्त तक हमारे हाथों से बहुत सारी रियासतें निकल गई थीं। उम्मीद थी कि हमारी रियासत अपना संविधान बनाएगी, क्योंकि तब तक भारत का संविधान नहीं बना था। मैंने ही संविधान सभा बुलाई थी। वो संविधान मेरे ही हस्ताक्षर से बना था।

सवाल : अगर आर्टिकल 370, 35A सेतु था तो ये नासूर कब बन गया था?

जवाब : आर्टिकल 370 और 35A दोनों अलग-अलग था। संविधान में आर्टिकल 370 आ गया था। 35A का कारण यह है कि 1929 में पिता जी ने दो काम किए। पहला- बाहरी व्यक्ति यहां जमीन नहीं खरीद सकता है। दूसरा- बाहरियों को यहां नौकरी नहीं मिलेगी। पिता जी ने अपने लोगों की रक्षा के लिए ये कदम उठाए थे। आज यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर में कोई मजदूर नहीं है।

सवाल : जब 4 प्रांत मिलकर रियासत बनी तो जम्मू- कश्मीर में लद्दाख और गिलगित बाल्टिस्तान का नाम क्यों नहीं जोड़ा गया?

जवाब : पहले से ही जम्मू एंड कश्मीर नाम था। हमारी एक राजधानी जम्मू में थी और दूसरी कश्मीर में। हम डोगरा हैं, हमारी मुख्य राजधानी जम्मू है और कश्मीर हमारे पास आ गया। हम कितने नाम रखते।

सवाल : जम्मू एंड कश्मीर के विलय करने में दो महीने की देरी क्यों हुई?

जवाब : उस वक्त मेरी उम्र 15-16 साल थी और बीमार था। मैं इस विषय में पिताजी को राय नहीं दे सकता था। पिता जी के सामने भी कई मजबूरियां थीं। उन्होंने माउंटबेटन को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वो किस देश भारत और पाकिस्तान के साथ जाएं।

सवाल : कहते हैं कि पाकिस्तान और मोहम्मद जिन्ना आपकी माताजी से ज्यादा परेशान थे?

जवाब : पाकिस्तान और शेख अब्दुल्ला भी परेशान रहते थे। मां गांव की थीं। वो गरीबी जानती थीं। पिताजी बाहर नहीं जाते थे, लेकिन माताजी जाती थीं। इसलिए पाकिस्तान और अब्दुल्ला डरते थे, कहीं माताजी ज्यादा लोकप्रिय न हो जाएं।

सवाल : इतिहास के पन्नों में शेख अब्दुल्ला की पर्सनैलिटी को किस तरह से देखा जाना चाहिए?

जवाब : शेख अब्दुल्ला प्रभावशाली व्यक्ति थे। वे साढ़े छह फुट के थे और टोपी पहनने के बाद वे सात फुट के दिखते थे। वे उर्दू और कश्मीरी भाषा में अच्छे वक्ता थे। जब हमला हुआ था तब शेख अब्दुल्ला ने भारत का साथ दिया था। बाद में उनकी विचारधारा बदली, वो अलग बात है। उनका प्रभाव सबसे ज्यादा कश्मीरी भाषीय क्षेत्र पर था, ये उनमें सबसे बड़ी कमी थी।

सवाल : जब आपने शेख अब्दुल्ला के अरेस्ट वारंट पर साइन किए थे, तब कैसा लगा था?

जवाब : तब मैं 22 साल का था। मुझमें आत्मविश्वास था। शेख अब्दुल्ला के अरेस्ट वारंट पर साइन करते समय मजा आ रहा था। जेल से बाहर आने के बाद शेख अब्दुल्ला मुझसे मिलने आए थे और उन्होंने कहा था कि टाइगर कैसे हो? उन्होंने कोई गुस्सा नहीं दिखाया था। बांग्लादेश युद्ध के बाद उनकी सोच में बदलाव आया। तब वे समझे कि अब जम्मू एंड कश्मीर भारत से अलग नहीं हो सकता है।

सवाल : शेख अब्दुल्ला और फारूक अब्दुल्ला के बीच क्या अंतर है?

जवाब : फारूक अब्दुल्ला बड़े मजेदार आदमी हैं। वे गाते हैं और नाचते भी हैं। वे मिलनसार हैं।

सवाल : क्या आपको लगता है कि जम्मू कश्मीर पटरी पर आ गया?

जवाब : पहले के निजाम में पाकिस्तान से आए रिफ्यूजी एमपी को वोट दे सकते थे, लेकिन एमएलए को नहीं। उन्हें यहां नौकरी मिलती थी और वे जमीन नहीं खरीद सकते हैं। महिला के साथ व्यवहार अच्छा नहीं था, लेकिन अब काफी सुधार हुआ। एलजी मनोज सिन्हा ने बहुत काम किया। अब विधानसभा चुनाव होना चाहिए। हमें राज्य का दर्जा मिलना चाहिए।

सवाल : विधानसभा चुनाव के बाद क्या बदलाव होगा?

जवाब : पारदर्शी चुनाव से काफी फर्क पड़ेगा। लोगों को वोट के माध्यम से अपनी बात कहने का मौका मिला। अभी कुछ लोगों के मन में गुस्सा है।

सवाल : आर्टिकल 370 हटाने के दौरान कई नेताओं को नजरबंद किया गया, उसे आप किस तरह से देखते हैं?

जवाब : प्रजातंत्र में नेताओं को नजरबंद करना दुर्भाग्यपूर्ण है। अगर नजरबंद नहीं होते तो ये नेता लोगों की मीटिंग बुलाते और गोली चलती, लोग मर जाते। नजरबंद करने से एक भी कतरा खून का नहीं गिरा।

सवाल : आपने वेदांत और सनातन धर्म की पढ़ाई कब शुरू की थी?

जवाब : आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि मैंने कभी संस्कृत नहीं पढ़ी। न स्कूल में और न कॉलेज में। एक पंडित जी आए थे और वहीं से आरंभ किया, फिर आता चला गया। मुझे उपनिषद् सबसे ज्यादा पसंद है। श्रीमद्भगवद्गीता भी पसंद है।

सवाल : आज के युवाओं को धर्म को किस तरह से समझना चाहिए।

जवाब : धर्म के बहुत सारे अंग हैं। श्रेष्ठ धर्म उपनिषद का ज्ञान है। सबसे पहले युवा अपनी भाषा ठीक रखें। माता-पिता की इज्जत करें। किसी धर्म से नफरत न करें। हिंसा न करें। व्यवहार अच्छा रखें। यही सब धर्म का आधार है।

सवाल : राजा-महाराजा रघुवंशी बने, लेकिन वे कृष्णवंशी क्यों नहीं बने?

जवाब : कुछ चंद्रवंशी राजपूत बने, जो श्रीकृष्ण को मानते हैं। सूर्यवंशी राजपूत रामजी को मानते हैं। मैं तो शिवजी का भक्त हूं। श्रीराम और श्रीकृष्ण विष्णुजी के अवतार हैं। रघुवंशी होने की वजह से श्रीराम को मानते हैं।

सवाल : अयोध्या में श्रीराम का मंदिर बन गया। क्या इस मुद्दे को साइड कर देना चाहिए?

जवाब : अब मंदिर बन गया है। मैंने भी 11 लाख रुपये की भेंट चढ़ाई थी। हम बाल कृष्ण की पूजा को समझते थे, लेकिन बाल श्रीराम के बारे में नहीं सुना था। अगर आपस में समाधान हो जाता तो अच्छा रहता।

सवाल : आप अपने जीवन को किस तरह से देख रहे हैं?

जवाब : मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ देखा। पिताजी का राज और अंग्रेजों का झंडा देखा। जब जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने थे, उन्हें भी देखा। नेहरू की किताबों को पढ़कर बड़ा हुआ। मैं इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में 10 साल था। मैं हफ्ते में एक दिन गाने का रियाज भी करता हूं। ब्रज भाषा और अवधी भाषा में ही रस है।

सवाल : आप अपनी पत्नी के बारे में क्या कहेंगे?

जवाब : मेरी शादी बचपन में ही हो गई थी। घर में हम दोनों ही साथ रहते थे। उनसे मुझे ताकत मिलती थी। चुनाव में उनकी वजह से ज्यादा वोट मिलते थे। पहली बार पत्नी से दिल्ली में मुलाकात हुई थी।

सवाल : आप अभी अपना वक्त किस तरह से व्यतीत करते हैं?

जवाब : आजकल मैं 11 बजे से अपना काम शुरू करता हूं। मैं सुबह 2 घंटे पूजा करता हूं। फिर 11 से 1.30 बजे तक लोगों से मिलता हूं। फिर डेढ़ बजे खाना खाता हूं और फिर अखबlर पढ़ने के बाद 3 बजे रेस्ट करता हूं। फिर 5 बजे के बाद किसी कार्यक्रम में जाना होता या फिर कोई अन्य काम करता हूं। फिर रात 9 बजे खाता हूं और फिर पूजा।

सवाल : आपकी टोपी का क्या राज?

जवाब : अच्छी लगती है कि इसलिए टोपी पहनता हूं। जितने मेरे सूट हैं] उतनी ही मेरी टोपी हैं।

सवाल : आपकी राजनीति का उत्तराधिकारी कौन होगा?

जवाब : मैंने अब राजनीति में हिस्सा लेना बंद कर दिया है। अगर बच्चों को पसंद होगा तो वे राजनीति में जाएंगे, लेकिन जबरदस्ती से नहीं भेजूंगा।

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