अरुणाचल को लेकर भारत को क्यों उकसाता है चीन, पीएम मोदी की किस बात से लगी मिर्ची
India China : पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन का नाजायज दावा और दर्द लंबे समय से जारी है। एक बार फिर चीन की शी जिनपिंग सरकार ने इस राज्य को लेकर राग अलापा है। जबकि भारत की ओर से चीन के इस बेतुके दावे को तत्काल खारिज कर दिया गया है। आइए जानते हैं कि हाल ही में ऐसा क्या हुआ कि चीन को अरुणाचल की याद फिर सताने लगी है।
भारत के पूर्वोत्तर हिस्से के सात राज्यों में अरुणाचल की सीमा चीन से सटी हुई है। गाहे-बगाहे चीन अनधिकृत रूप से अरुणाचल के हिस्से पर दावा करता रहा है। हालांकि, चीन को अब एहसास होने लगा है कि भारत अरुणाचल को लेकर इंच भर भी पीछे नहीं हटने वाला है। वहीं, अरुणाचल के लोग भी पूरी तरह भारत के साथ हैं। फिर भी चीन अरुणाचल के मुद्दे को हवा देने के लिए बीच-बीच में राग अलापता रहता है।
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चीन में शी जिनपिंग की सरकार है और जिनपिंग का ब्रांड कहा जाने वाला बीआरआई लगातार मात खाता जा रहा है। चीन की आर्थिक स्थिति से लेकर जिनपिंग का सियासी कद उनके देश से लेकर दुनिया भर में घटता जा रहा है। दूसरी तरफ भारत दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर से तेजी से अग्रसर है। पीएम मोदी के नेतृत्व में दुनिया भर में भारत की साख लगातार बढ़ती जा रही है। इससे ध्यान भटकाने के लिए चीन कभी सीमा विवाद, कभी अरुणाचल राग तो कभी सैनिकों के साथ झड़प जैसी घटनाओं को अंजाम देता रहा है।
मोदी के दौरे से चीन को लगी मिर्ची
ताजा घटनाक्रम में चीन ने एकबार फिर से अरुणाचल प्रदेश को लेकर मुंह खोला है। दरअसल, पीएम मोदी ने पिछले 9 मार्च को अरुणाचल का दौरा किया था और कई परियोजनाओं का उद्घाटन किया। इनमें से तवांग बॉर्डर को जोड़ने वाली एक परियोजना भी है, जो लगभग 13 हजार 700 की ऊंचाई पर बनाई जा रही है। यह असम के तेजपुर से अरुणाचल के तवांग से जुड़ जाएगी। आम लोगों की सुविधा के साथ ही इन परियोजनाओं से जहां आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी तो वहीं सैन्य उपयोग भी किया जा सकेगा। चीन को इसी बात का दर्द है।
भारत का बढ़ रहा कद
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर आगामी 25 मार्च को दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के दौरे पर रहेंगे। वह फिलीपींस के साथ ही ताइवान से बातचीत करेंगे। एशियाई देशों में भारत के लगातार बढ़ते कद और यूरोप, अमेरिका में भारत की बढ़ती धाक से भी चीन की चिंता बढ़ रही है। दूसरी तरफ चीन के लिए भारत अब पहले जैसा नहीं रहा और उसे कड़ा प्रतिकार झेलना पड़ता है। चीन को लेकर अमेरिका की 'वन चाईना' नीति भी संदेह के घेरे में है। चीन ने जिन देशों को कर्ज या आर्थिक सहायता दिया है, वह भी कम्युनिस्ट देशों के कर्ज से उबरते जा रहे हैं। इससे चीन की बेचैनी बढ़ती जा रही है।
भारतीय विपक्ष का चीन उठा रहा फायदा
चीन को मालूम है कि उसके बयान के बाद भारत में विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर हो जाएगा। ऐसे में मोदी सरकार का ध्यान विकास से अधिक पीपुल लिबरेशन आर्मी से लड़ने में लग जाएगा। मोदी सरकार के दौरान भारत-चीन सीमा पर करीब 3488 किमी आधारभूत ढांचा की बेहतरी को लेकर कार्य हुआ है। जिससे भारतीय सेना की आवाजाही, सैन्य साजो-सामान का परिवहन, निगरानी आदि पहले से बेहतर और चुस्त होंगे।
चीनी शेयर का फूट गया गुब्बारा
चीन की आर्थिक प्रगति का भांडा शेयर बाजार में आई गिरावट की वजह से फूट चुका है। चीन जैसा तथाकथित कम्युनिस्ट देश स्टॉक मार्केट में 400 बिलियन आरएमबी के साथ प्रवेश किया था, जोकि साल 2015 में आई गिरावट के बाद यह बड़ी रकम है। साल 2015 में हालात को सुधारने के लिए चीन ने 900 बिलियन आरएमबी लगाया था जिसके कारण बीआरआई लगातार घाटे में जा रहा है। बीआरआई का कर्ज लगभग एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो चुका है। चीन के कर्जदारों में पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव, वेनेजुएला, केन्या, तंजानिया, युगांडा, अंगोला, लाओस आदि देश हैं, जिनकी स्थिति यह है वे अब ब्याज के साथ कर्ज चुका पाने की हालत में नहीं हैं। तकरीबन इसका हाल वहीं है जिसे हम नान परफार्मिंग एसेट के रूप में देखते हैं। लगातार बिगड़ रही माली हालत और दुनिया भर में बेनकाब हो रहा चीन अब बौखलाहट में सीमा विवाद जैसे बातों को हवा दे रहा है, जिससे शी जिनपिंग अपनी सत्ता पर कायम हैं।
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क्या है बीआरआई
बेल्ट एंड रोड इंनिशिएटिव जिसे बीआरआई कहा जाता है। वास्तव में यह चीनी योजना है, जिसके अंर्तगत सीमाओं पर विभिन्न देशों के साथ सड़क, पुलों आदि का निर्माण किया जाता है। चीन इस क्षेत्र में भारी निवेश करता रहा है। उसका असली दर्द यही है कि भारत अपनी सीमाओं को लेकर बेहद चौकस हो गया है और लगातार आधारभूत संरचनाओं को तेजी से विकसित कर रहा है।